डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय रायपुर (छत्तीसगढ़)
जल सभी जीवधारियों के लिए नितांत जरूरी है। पेड़-पौधे भी अपना भोजन जल के माध्यम से ग्रहण करते है। इसलिए जल ही जीवन है कहना कोई
अतिश्योक्ति नहीं है। प्रत्येक जीवधारियों की कोशिकाओं में 90% से भी ज्यादा जल
की मात्रा होती है। शारीर की समस्त क्रियाएं जल के माध्यम से ही संपन्न होती है। धरती की 75% सतह जलमग्न है। जल कृषि ही नहीं अपितु उद्योग, कल कारखानों के लिए भी
अत्यावश्यक आदान है। पृथ्वी को जलीय-गृह कहा जाता है। धरती के तापमान को सामान्य बनाए
रखने में जल का बहुत बड़ा योगदान है, अन्यथा पृथ्वी पर तपिस इतनी बढ़ जाएगी की जीव धारियों का रहना कठिन हो जाएगा। जल हमें अनेको रूप में प्राप्त होता है। जल का
सामान्य रूप द्रव है। यह वायुमंडल में भाप के रूप में होता है, ध्रुवों में बर्फ
के रूप में होता है तथा कभी-कभी यह ओस-ओला, कोहरा तथा पाले के रूप में भी हमें दिखाई
देता है। दक्षिण गोलार्द्ध में 81 % जल तथा 19 % स्थल है उत्तरी गोलार्द्ध में
54% जल तथा 46% स्थल है। जल को हम पांच तरीकों से जान सकते है-महासागरीय जल,
अंतर्द्विपीय जल, वायु मंडलीय जल, जैवमंडलीय जल तथा भूमिगत जल . महासागरीय जल
स्वाद में नमकीन होता है। प्रति किलोग्राम पर इसमें लवणता औसतन 35 ग्राम होती है
.क्योंकि सूरज की गर्मी महासागरों के जल पर निरंतर पड़ती रहती है, इसलिए वाष्पीकरण
की क्रिया भी लगातार होती रहती है जिसमे जल सदैव उड़ता रहता है। इस प्रकार सागर के
जल में लवणों की अधिकता हो जाती है।
भारत में लगभग 80% जल कृषि में सिंचाई हेतु प्रयोग किया जाता है परन्तु जल की लगातार घटती उपलब्धता के कारण कृषि क्षेत्र के लिए उपलब्ध जल पर दबाव बढ़ रहा है और ऐसी संभावना है की वर्ष 2025 तक कुल शुद्ध जल का मात्र 63% भाग ही कृषि उपयोग के लिए मुहैया हो पायेगा। ऐसे में खाद्यान्न उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है यानी जल के साथ साथ भोजन की भी किल्लत हो सकती है। भारत में जहाँ 1951 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धतता 5177 घन मीटर हुआ करती थी वह 2011 में घटकर 1545 घन मीटर रह गई है। इस प्रकार बीते 60 वर्षों में जल उपलब्धता में लगभग 70 % की गिरावट दर्ज की गई जो की हम सब के लिए चिंता और चिंतन का विषय है।
भारत में लगभग 80% जल कृषि में सिंचाई हेतु प्रयोग किया जाता है परन्तु जल की लगातार घटती उपलब्धता के कारण कृषि क्षेत्र के लिए उपलब्ध जल पर दबाव बढ़ रहा है और ऐसी संभावना है की वर्ष 2025 तक कुल शुद्ध जल का मात्र 63% भाग ही कृषि उपयोग के लिए मुहैया हो पायेगा। ऐसे में खाद्यान्न उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी है यानी जल के साथ साथ भोजन की भी किल्लत हो सकती है। भारत में जहाँ 1951 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धतता 5177 घन मीटर हुआ करती थी वह 2011 में घटकर 1545 घन मीटर रह गई है। इस प्रकार बीते 60 वर्षों में जल उपलब्धता में लगभग 70 % की गिरावट दर्ज की गई जो की हम सब के लिए चिंता और चिंतन का विषय है।
यह सही है कि प्रकृति ने दिल खोलकर, उदारतापूर्वक हमें पानी
का वरदान दिया है यानि प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध कराया है। एक अध्ययन के
अनुसार हमारे देश में प्रति वर्ष वर्षा के रूप में 4000 बीसीएम पानी बरसता है
जिसमे से हम औसतन 600 बीसीएम का ही उपयोग कर पाते है, जाहिर है कि बाकी सब
पानी व्यर्थ बह जाता है। इसे यूं समझना
आसान होगा कि बादलों से 4000 बूंदे गिरती है जिसमें से हम 600 बूंदों का इस्तेमाल
कर पाते है। इसका सीधा तात्पर्य यह हुआ कि प्रकृति ने पानी देने में तो कोई कंजूसी
नहीं बरती, हम ही उसे सहेजने-संवारने में असफल साबित हो रहे है।
हकीकत तो यह है कि हमने पानी की कीमत को कभी नहीं पहचाना,
उसका सही मोल नहीं किया। माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम की लय पर पानी को बहाते रहे,
खुले हाथों खर्च करते रहे, उसे बचाने-सहेजने की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। हम पानी की इज्जत
करना भूल गए और क्रमशः उस अवस्था में पहुंच गए जहां पानी की कमीं ने हमारे चेहरों
का पानी उतारकर हमारी रंगत बिगाड़ दी है। धरती का सीना चीरकर लगातार बेखौफ पानी निकालने
से हमारा भूजल पाताल की ओर चला जा रहा है और यदि यही स्थिति रही तो एक दिन धरती की कोख
सूख जाएगी। हम तो नवीन प्रौद्योगिकी के बल पर कुछ समय तक जल प्राप्त कर लेंगे। लेकिन पृथ्वी
को प्राणवान वायु देने वाले इन पेड़-पौधों का क्या होगा ? क्या इनके विना हमारा जीवन
संभव है। क्योंकि पेड़ नहीं होंगे तो हवा-पानी नहीं मिलेगा और इन दोनों की अनुपस्थिति में जीवन लीला समाप्त होना निश्चित है।
आज आवश्यकता इस बात की है की हम पानी के वास्तविक मोल को
पहचानें, उसके महत्त्व को समझें और हो सके तो दूध और अमृत के सदृश उसकी कद्र करें,
उसे तरजीह दें। पानी का न केवल हम सदुपयोग करें वरन उसके दुरूपयोग को एक अपराध मानें। याद रखें, अगर हम अब भी नहीं
जागृत हुए तो क्या आने वाली पीढियां हमें कठघरे में खड़ा कर बूंद-बूंद का हिसाब
नहीं मांगेगी? इसलिए हम सबको उपलब्ध जल का किफायती उपयोग करते हुए अपने-अपने निवास पर वर्षा जल सरंक्षण के लिए आवश्यक उपाय अपनाना चाहिए। सार्वजनिक स्थानों, कार्यालयों आदि स्थानों पर जल की अनावश्यक बर्वादी को रोकने के प्रयास करना चाहिए। खेती-किसानी में भी सिंचाई जल का फसल की आवश्यकतानुसार कुशल प्रयोग करने के लिए किसानों को प्रेरित करना चाहिए। प्रकृति प्रदत्त वर्षा जल को अपने आस-पास के तालाबों, कुओं में सहेजने/सरंक्षित करने में भी हम सब को सहकारी भाव से सहयोग देने की आवश्यकता है। जल की रोचक दुनिया
- विश्व जल दिवस 2 फरवरी को मनाया जाता है।
- एक व्यक्ति अपने जीवन काल में लगभग 61000 लीटर पानी पीता है।
- वयस्क व्यक्ति के शारीर में 70% पानी होता है।
- जन्म के समय बच्चे के पूरे वजन का 80% भाग पानी होता है।
- एक वयस्क व्यक्ति प्रति दिन औसतन 100 गैलन पानी उपयोग में लेता है।
- जब आदमी के शारीर में 1% पानी की कमीं हो जाती है तब उसे प्यास लगती है।
- शुद्ध जल का पीएच मान 7 होता है, जो न तो एसिड है और न ही क्षार।
- पृथ्वी पर 75% भाग पानी है।
- भू-सतह की अपेक्षा भूमिगत जल काफी साफ़ होता है।
- पृथ्वी पर जितना पानी है उसका 3% भाग ही उपयोगी है।
- शुद्ध जल का न तो स्वाद होता है, न रंग होता है और न ही उसमे कोई गंध होती है।
- पृथ्वी पर सबसे ज्यादा मात्रा में खारा पानी पाया जाता है।
- पानी की अपेक्षा बर्फ 9% हल्की होती है।
- प्रतिवर्ष जल जनित बीमारियों से विश्व में 40 लाख लोग मरते है।
- पानी 00C पर जम जाता है तथा 1000C पर उबलने लगता है।
- एक बार जब पानी भाप में बदल जाता है तब उस भाप के कण 10 दिनों तक वायुमंडल में रहते है।
- घर में कुल पानी का 74% भाग बाथरूम में, 21% धुलाई में तथा 5% रसोई घर में उपयोग होता है।
- प्रकृति के पदार्थों में से पानी ही ऐसा है जो ठोस (बर्फ), द्रव (पानी), तथा गैस (भाप, पानी वाष्प) तीनों रूपों में पाया जाता है।
- पृथ्वी के कुल पानी का 97 % खारा पानी, 03 % सादा तजा पानी होता है। इस तीन प्रतिशत में केवल 01% पानी पिने योग्य होता है। यह शुद्ध पानी ग्लेशियर तथा बर्फ के चट्टानों से आता है।
- हम बिना खाए एक माह तक जीवित रह सकते है, किन्तु बिना पानी पिए मात्र 5-7 दिनों तक ही जीवित रह सकते है।
- भारत में लगभग 1.19 मीटर यानि 1190 मिमी. औसत वार्षिक वर्ष होती है, जो परिणाम के हिसाब से पर्याप्त है परन्तु वर्ष आगमन के समय व स्थान में अनिश्चितता व अस्थिरता होने के कारण देश के विभिन्न भागों में सूखे और बाढ़ की स्थिति निर्मित होती रहती है।
- भारत में जल प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 से लागू किया गया है।
- ओजोन परत को पर्यावरण छतरी के नाम से जाना जाता है।
- मनुष्य के शारीर में प्रधान रूप से छः तत्व ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, कैल्शियम तथा फॉस्फोरस पाए जाते है।
- शुष्क बर्फ ठोस कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के रूप में पायी जाती है।
- जल की अस्थाई कठोरता मैग्नीशियम और कैल्शियम बाइकार्बोनेट लवणों के कारण होती है
- जल की स्थाई कठोरता उनमे मिले मैग्नीशियम और कैल्शियम के क्लोराइड एवं सल्फेट लवणों के कारण होती है।
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