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बुधवार, 5 अप्रैल 2017

खाद्यान्न और पोषण सुरक्षा के लिए जरूरी है रागी की खेती

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) 

रागी (इल्यूसाइन कोरकाना) जिसे आमतौर पर मंडुआ भी कहते है, भारत में उगाए जाने वाले लघु धान्यों में सबसे महत्वपूर्ण एंव जीविका प्रदान करने वाला खाद्यान्न है।   रागी का दाना काफी पौष्टिक होता है जिसका आटा व दलिया बनाया जाता है। आटे से रोटी, पारिज, हलवा व पुडिंग तैयार किया जाता है। मधुमेह रोग के लिए यह विशेष रूप से लाभप्रद है। मधुमेह पीड़ित व्यत्कियों के लिए चावल के स्थान पर मंडुवा का सेवन उत्तम बताया गया है। इसके दाने में लगभग 7.3 प्रतिशत प्रोटीन, 1.3 प्रतिशत वसा, 72 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 2.7 प्रतिशत खनिज, 2.7 प्रतिशत राख तथा 0.33 प्रतिशत कैल्शियम पाया जाता है। इसके अलावा इसमें फाॅस्फोरस, विटामिन- ए व बी भी पाया जाता है। रागी के प्रसंस्करण से आटा तैयार किया गया है जो कि मधुमेह पीड़ित व्यक्तियों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है। रागी के अंकुरित बीजों  से माल्ट भी बनाते हैं जो कि शिशु आहार तैयार करने में काम आता है। इसके दानों से उत्तम गुणों वाली शराब  भी तैयार की जाती है।
भारत में रागी की खेती 15.84 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की गई जिससे 22.20 लाख हजार टन उत्पादन लिया गया। रागी की राष्ट्रीय औसत उपज 1421 किग्रा. प्रति हेक्टेयर है। जलवायु परिवर्तन के कारण घटते खाद्यान्न उत्पादन और कुपोषण जैसी समस्याओं से निपटने के लिए देश में रागी की खेती के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार और प्रति इकाई अधिकतम उपज लेने की महती आवश्यकता है । मंडुआ की खेती से सर्वाधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत उन्नत तकनीक का प्रयोग हितकारी साबित हो सकता है 

उपयुक्त जलवायु

          रागी शुष्क एंव नम जलवायु के लिए उपयुक्त फसल है। इसे 50 से 75 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले स्थानों में भली प्रकार उगाया जा सकता है। सिंचाई की सुविधा होने पर इसे उष्ण मौसम में भी उगाया जा सकता है। इसके बीज अंकुरण के लिए 24  तापमान उपयुक्त रहता है। फूल आने की अवस्था पर 11-12 घंटे की प्रकाश अवधि रहती है।

भूमि का चयन और खेत की तैयारी

          अच्छे जल निकास वाली दोमट से हल्की दोमट भूमि रागी की खेती के लिए उपयुक्त रहती है। मृदा में नमी धारण करने की क्षमता होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ एंव म. प्र. में यह फसल भारी, हल्की रेतीली, उतार-चढ़ाव वाली भूमि में उगाई जाती है। अधिक क्षारीय या अम्लीय भूमि इसकी खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है, पहाड़ी पथरीले क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है।
          रागी की अच्छी फसल हेतु महीन एंव समतल भूमि चाहिए। अतः वर्षा प्रारंभ होने के पश्चात् ही एक जुताई मिट्टि पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद दो बार हल और बखर से अच्छी तरह जुताई कर पाटा चलाना चाहिये।

उन्नत किस्मों का प्रयोग 

          उन्नत किस्मों के बीज का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि स्थानीय किस्मों की तुलना में इनसे लगभग 25-30 प्रतिशत अधिक पैदावार ली जा सकती है। रागी की उन्नत किस्मों में ईसी-4840, पीआर-202, वीएल-101, वीएल-149, वीएल-204, पीइएस-176, एचआर-374, निर्मल, विक्रम  आदि देश के विभिन्न राज्यों में उगाई जा रही है . मध्य प्रदेश के लिए उपयुक्त रागी की प्रमुख उन्नत किस्मों की विशेषताएँ
  • जे. एन. आर. 852: यह किस्म लगभग 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। प्रत्येक बालियों में 8-10 अंगुलियाँ होती हैं। इसकी औसत पैदावार 15 से 20 क्विंटल/हेक्टेयर होती है।
  • जे. एन. आर. 981-2: यह किस्म  लगभग 100 दिन में पककर तैयार होती है। इसकी औसत उपज क्षमता  20 क्विंटल/हेक्टेयर  है.
  • जे. एन. आर. 1008:  यह किस्म 100 से 105 दिन में पक कर 20-22 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज देती  है। दानों का रंग गुलाबी होता है।
  • व्ही. एल. 149: यह किस्म 98-102 दिन में तैयार होकर औसतन 20-25 क्विंटल/हेक्टेयर प्राप्त उपज देती है। यह ब्लास्ट रोग प्रतरोधी किस्म है।
  • एचआर 374: यह  किस्म अवधि 100 दिन में तैयार होकर  20-21 क्विंटल/हेक्टेयर उपज देती है।
  • पी आर - 202: यह किस्म 110 दिन में तैयार होकर 19-20 क्विंटल/हेक्टेयर उपज देती है।

बोआई का समय

          रागी को जून से लेकर अगस्त तक कभी भी बोया जा सकता है। रागी की बुआई मानसून के आगमन के तुरन्त बाद जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक करना उपयुक्त होता है। समय पर बोआई करने से उपज भी अधिक मिलती है एंव रोग तथा कीट का प्रकेाप भी कम होता है। दक्षिणी भारत के सिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती वर्ष भर की जाती है। बोआई 25 जुलाई के बाद करने पर मक्खी-कीट से काफी हानि होती है।

बीज एंव बोआई

          उन्नत किस्मों के बीज का प्रयोग करें। प्रति हेक्टेयर 8-10 किग्रा. तथा छिड़का बोआई के लिए 12-15 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त हेता है। बोने से पहले बीज को 3 गा्रम थायरम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित अवश्य करें। पंक्तियों में बोने के लिए बीज या तो देशी हल द्वारा कूंड़ में या फिर सीड ड्रिल द्वारा बोया जाता है। पंक्तियों की दूरी 22.5 सेमी. तथा पौधों के मध्य की दूरी 7.5 सेमी. रखनी चाहिए। ढलान युक्त खेतों में ढाल के विपरीत बोआई करने में नमी संरक्षित होती है और मृदा कटाव भी कम होगा। बीज की बोआई 3 सेमी. से ज्यादा गहरा नहीं   होना चाहिए। जहाँ पौधे न जमे हो वहाँ अधिक घने स्थान से पौधे उखाड़कर बोआई के 15 से 25 दिन के अंदर लगायें अथवा रोपाई करें। यह कार्य रिमझिम गिरते पानी में करना चाहिए ताकि पौधों की जड़ों का जमाव अच्छी तरह से हो सके।
          रागी फसल रोपाई करके भी उगाई जा सकती है। रोपाई के लिए बीज पौध शाला में मई के अंत तक बो देना चाहिए। रोपाई हेतु नर्सरी उगाने में 4 किग्रा. बीज/हे. की आवश्यकता पड़ती है। जब पौध 25-30 दिन की हो जाये तो वर्षा के तुरंत बाद रोपाई कर देना चाहिए। रोपाई में कतार की दूरी 25 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी. रखनी चाहिए।

खाद तथा उर्वरक

          आमतौर पर किसान रागी फसल में खाद-उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करते है  परन्तु इसकी  अच्छी उपज लेने के लिए 40 किलो नत्रजन तथा 30-40 किलो स्फुर तथा 20-30 किग्रा. पोटाॅश प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। सभी उर्वरकों को अच्छी तरह मिलाकार बोते समय ही बीज से 4-5 सेमी. की दूरी पर बनें कूड़ों में डालना चाहिए दावा खेत मे छिटककर मिला देना चाहिए। नत्रजन का आधा भाग बोआई के समय व शेष भाग प्रथम निंदाई के ठीक बाद अर्थात बोआई के 25 से 30 दिन के पश्चात् कूड़ों में देना चाहिए। जैविक खाद यथा गोबर की खाद या कम्पोस्ट 5-7 टन प्रति हेक्टेयर खेत की अंतिम जुताई के समय मिट्टि में मिलाना चाहिए। इनका प्रयोग करने पर उर्वरक की मात्रा कम कर देनी चाहिए।

सिंचाई एंव जल निकास

          खरीफ में बोई जाने वाली फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। ग्रीष्म या रबी में बोई जाने वाली फसल में 2-3 सिंचाई देने उपज में बढोत्तरी होती है। रागी की फसल जल मग्न अवस्था में नहीं उग सकती। इसके लिए अच्छे जल निकास का होना आवश्यक है। अतः बोने से पूर्व खेत को समतल करके सुविधानुसार नालियाँ बना देना  चाहिए जिससे वर्षा का अतिरिक्त पानी खेत से बाहर निकल जाए।

खरपतवार नियंत्रण

          फसल बोने के 20-25 दिन के बाद एक बार निंदाई-गुड़ाई करना चाहिए। दूसरी निंदाई 40 से 45 दिन में अवश्य पूरी कर लेनी चाहिए। कतारों  में फसल बोने पर निंदाई-गुड़ाई का कार्य हल या हैरो द्वारा किया जा सकता है। रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई पश्चात् या अंकुरण पूर्व आइसोप्रोट्यूरान नामक रसायन 500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कना चाहिए। इसके अलावा बोआई के 40-45 दिनों बाद 2,4-डी सेडियम लवण 400 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से सँकरे व चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।

कटाई -मड़ाई और उपज 


          रागी की जून-जुलाई में बोई गई फसल दिसम्बर के अन्त (90-110 दिन) तक पककर तैयार हो जाती है। हँसिये से फसल की कटाई कर ली जाती है व बालियों को तने से अलग कर धूप में अच्छी तरह से सुखा लिया जाता है। सूखी बालियों को पीट कर अथवा बैलों की दाॅय चलाकर दाने अलग कर लिये जाते हैं। रागी की उत्तम फसल से प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल  दाना तथा 25-30 क्विंटल  सूखा चारा प्राप्त होता है। जब दाने अच्छी तरह सूख जायें और उनमें नमी 10-12 प्रतिशत से अधिक न हो तो उन्हें बोरियों में भर कर सूखे भंडार गृह में रखना चाहिए।

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