डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
लोबिया या बरबटी (विगना साइनेनसिस) लेग्यूमिनोसी कुल की दलहनी फसल है जिसकी खेती मुख्यतः सब्जी, दाल और चारे के लिए की जाती है। खरीफ में इसे ज्वार, बाजरा या मक्का फसल के साथ अंतः फसल के रूप में उगाया जाता है। यह सिंचित क्षेत्रों में गर्मी मे बोई जाने वाली चारे की महत्वपूर्ण
दलहनी फसल है। असिंचित स्थानों मे इसे वर्षा ऋतु मे बोया जाता है। फसल चक्र में
लोबिया का महत्वपूर्ण स्थान है क्योकि इससे कम अवधि में उच्चकोटि का हरा चारा प्राप्त होता
है, साथ ही दलहनी फसल होने के कारण यह भूमि की उर्वरता भी बढ़ाती
हे। इसके हरे चारे को अच्छे गुणो वाली हे एवं साइलेज के रूप मे संरक्षित किया जा
सकता हे। लोबिया के चारे मे 14-20 प्रतिशत प्रोटीन,
8-12 प्रतिशत पाच्य प्रोटीन एवं 60-65 प्रतिशत
कुल पचनीय पोषक तत्व पाये जाते हैं। इसे जुआर, बाजरा और मक्का के साथ मिलाकर मवेशियो को खिलाना फायदेमंद पाया गया है । लोबिया से प्रति इकाई अधिकतम उत्पादन लेने के लिए आधुनिक शस्य विधियाँ इस ब्लॉग में प्रस्तुत है।
जलवायु एवं
भूमि
लोबिया ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में उगाई जाने वाली फसल है। इसकी जलवायु
सम्बन्धी आवश्यकताएँ मक्का और ज्वार जैसी हैं। मक्का की अपेक्षा सूखा और गर्मी सहन
करने की क्षमता लोबिया में अधिक है। इसके बीज 14 से 15 से नीचे तापक्रम पर अंकुरित नहीं हो पाते हैं। पाले एवं कम तापक्रम का
वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उचित जलनिकास वाली दोमट, चिकनी दोमट और काली मिट्टी मे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है परन्तु बलुई
दोमट या दोमट मिट्टी काफी उपयुक्त पायी जाती है।
खेत की
तैयारी
लोबिया के लिए खेत की बहुत तैयारी नहीं करनी चाहिए है। खेत की दो या तीन
जुताई करना पर्याप्त होती है। इसके लिए भूमि की ऊपरी सतह तैयार करनी चाहिए।
उन्नत
किस्में
चारे वाली लोबिया की उपयुक्त प्रमुख किस्मों की विशेषताएँ निम्नानुसार हैं -
1. रसियन जाइन्ट: यह फैलने वाली किस्म है। तना लम्बा एवं पत्तियाँ बड़ी होती हैं। शुद्ध फसल के लिए उपयुक्त है। औसतन 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चार प्राप्त होता है।
1. रसियन जाइन्ट: यह फैलने वाली किस्म है। तना लम्बा एवं पत्तियाँ बड़ी होती हैं। शुद्ध फसल के लिए उपयुक्त है। औसतन 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चार प्राप्त होता है।
2.
यू.पी.सी. 5286: यह सिंचित और असिंचित अवस्थाओ
में खरीफ एव जायद ऋतुओ मे उगाने के लिए आदर्श किस्म है। इसकी फसल अवधि 140-150 दिन है, फलियाँ चटकती नहीं हैं। इसकी कटाई 50 प्रतिशत पुष्पावस्था में करने पर औसतन 350-380
क्विंटल/हे. हरा चारा देती है।
3.
यू.पी.सी.5287: यह किस्म बोने के लगभग 55-65 दिन बाद फूल तथा फलियाॅं बननेकी अवस्था में पहुंच जाती है। हरे चारे की औसत उपज 350
क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
4.
सी.26: पीला मोजैक निरोधक किस्म ग्रीष्म ऋतु
के लिए उपयुक्त है। हरे चारे की औसत उपज 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आती है
5. ई.सी. 4216: यह मध्यम समय मे पकने वाली किस्म है। उपज 350 क्विं/हे. हरा चारा।
5. ई.सी. 4216: यह मध्यम समय मे पकने वाली किस्म है। उपज 350 क्विं/हे. हरा चारा।
6.
यू.पी.सी. 9020: यह अगेती (60-65) किस्म है। हरे चारे की उपज 400 क्विं/हे.।
7.
एच.एफ.सी. 42-1: यह किस्म मिश्रित फसल के रूप
में उगाने के लिए अधिक उपयुक्त है। शुद्ध फसल से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा मिलता है।
8.
बुन्देल लोबिया - 1: कीट एवं रोग प्रतिरोधी इस किस्म से हरे चारे की उपज 250-320 क्विं/हे. प्राप्त हो सकती है ।
9.
बुन्देल लोबिया - 2: यह लीफ मोजैक वाइरस
प्रतिरोधी किस्म है। औसतन 220-350 क्विं/हे. हरा चारा देती
है।
इनके अलावा इगफ्री एस-450 व इगफ्र एस-457 (बीज के लिए भी उपयुक्त) तथा चारे के लिए इगफ्री ए-978, सिरसा-10, जवाहर लोबिया-1, जवाहर
लोबिया-2 किस्में भी लगाई जा सकती है।
बीज एवं
बोआई
सामान्य रूप से असिंचित क्षेत्रों में इसे वर्षा के प्रारंभ में बोया जाता
हैं और सिचिंत क्षेत्रो में इसे मार्च से जून के बीच मे बोया जा सकता है। बोआई से
पहले बीज को 2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा. बीज की दर से
उपचारित करना चाहिए आमतौर पर इसकी बोनी छिटकवां विधि से की जाती है। परन्तु कतारो
में र्बोआ करना अधिक लाभप्रद रहती है। इसके लिए कतारों से कतारो की दूरी 30 से 40 सेन्टीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखना चाहिए साधारणतः लोबिया की
शुद्ध फसल के लिए बीज दर 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एवं
मिश्रित फसल के लिए 10-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब
से बोया जाता है। छिटकवां विधि से बोने पर बीज अधिक लगता है।
उर्वरक प्रबंधन
लोबिया की अच्छी फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 20-30
किलोग्राम नत्रजन तथा 40 से 60
किलोग्राम स्फुर की आवश्यकता पड़ती है। इन दोनों उर्वरकों को मिलाकर बुआई के समय या
उससे दो दिन पहले खेत मे डालना चाहिए।
सिंचाई एवं
जल निकास
मार्च से अप्रैल के बीच बुवाई करने पर 8 से 10 दिन के अंतर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिचाई बुवाई के 10 दिन बाद की जानी चाहिए खरीफ फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
अधिक बरसात होने पर खेत में जल निकास की आवश्यकता पड़ती है।
निंदाई-गुड़ाई
खरपतवारों को निकालने के लिए फसल में अंकुरण के 15
दिनो के अंदर एक बार निंदाई-गुड़ाई करना पर्याप्त होता हे। इसके पश्चात् लोबिया की
अच्छी बढ़वार व फैलाव के कारण खरपतवार नियंत्रित रहते हैं।
कटाई एवं
उपज
सामान्यतः चारे के लिए लोबियो की कटाई बोने के 60-70
दिन बाद एव बीज के लिए बुवाई के 90-100 दिन बाद करते हैं।
लोबिया की ग्रीष्मकालीन फसल की कटाई दो बार की जा सकती है जबकि वर्षाकालीन फसल की
केवल एक ही कटाई की जाती है। रशियन जाइन्ट किस्म में पहली कटाई बुआई के 50 दिन बाद और दूसरी कटाई पहली कटाई के 40 दिन बाद
करते हैं। पहली कटाई भूमि की सतह से 10-15 सेमी. ऊपर से करनी
चाहिए जिससे अगली कटाई के लिए बढ़वार शीघ्र व अच्छी हो सके। फूल बननेकी अवस्था मे
कुल पाचनशील तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं अतः कटाई फुल आते समय की जानी
चाहिए। दाने वाली फसल को फलियों के पूर्ण रूप से पक जाने पर ही काटना चाहिए। हरे
चारे की उपज गर्मी की ऋतु में 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा वर्षा ऋतु में बोई गई फसल मे 250 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती
है। सामान्य दशा में 8-10 क्विंटल प्रत हेक्टेयर औसत बीज
उत्पादन मिल जाता है।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
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