डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व
विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
प्रकृति ने मानव जाति को पौधे और वनस्पतियों का अमूल्य खजाना दिया है जिनके वगैर हम पृथ्वी पर जीवित नहीं रह सकते है परन्तु
यह भी सत्य है की सभी पौधों को अबाध गति से उगने और बढ़ने नहीं दिया जा सकता। विश्व में तीन लाख से अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती है, जिनमे से केवल तीन
हज़ार जातियां आर्थिक रूप से फायदेमंद पाई गई है। जब आर्थिक महत्त्व की प्रजातियाँ
अर्थात फसलें खेतों में उगाई जाती है, तो उनके साथ बहुत से अवांक्षित पौधे भी स्वतः उग जाते है जो
फसल उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता को भारी क्षति पहुंचाते है । इन्ही अवांक्षनिय पौधों को हम
खरपतवार यानि दुष्ट पौधे कहते है। हमारे किसान भाई उपलब्ध सीमित संसाधनों द्वारा बढती
जनसँख्या का भरण पोषण करने हेतु हाड़ तोड़ मेहनत करके खाद्यान उत्पादन बढाने निरंतर
प्रयासरत है परन्तु उनके द्वारा उगाई जाने वाली फसलों के साथ अवांक्षित पौधे भी उग
आते है जो फसल के साथ स्थान, नमीं, पोषक तत्व, प्रकाश आदि के लिए प्रतियोगिता करने
लग जाते है जिससे उनका उत्पादन काफी कम हो जाता है। एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में विभिन्न व्यधिओं से प्रति वर्ष लगभग 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपये
की हानी होती है जिसमे से 51,800 करोड़ रुपये की हाँनि खरपतवार प्रकोप से होती है। ऐसे में हमें फसलों में खरपतवार नियंत्रण
के लिए समझदारी से कार्य करना होगा तभी खेती में लगने वाले धन और श्रम का सही
प्रतिफल प्राप्त हो सकेगा। इस आलेख के माध्यम से खरपतवारों से खरीफ फसलों को होने वाली संभावित हाँनिया और उनके नियंत्रण के समसामयिक उपाय पर चर्चा प्रस्तुत कर रहे है।
धान के प्रमुख खरपतवार : सावा (इकाइनोक्लोआ कोलोना), कोदों (एल्युसिन इंडिका),
कनकौआ (कोमेलिना बेंघालेंसिस), जंगली जूट (कार्कोरस एक्यूटेंगूलस), मोथा
(साईंप्रस), जंगली धान आदि
मक्का, ज्वार, बाजरा : दूबघास (साइनोडॉन डेक्टिलोन), गुम्मा (ल्यूकस अस्पेरा),
मकोय (सोलोनम नाइग्रम),कन्कौआ, जंगली जूट, सफ़ेद मुर्ग, सावा, मोथा आदि।
खरीफ की दलहनी एवं तिलहनी फसलें: मह्कुआ (एजिरेटम कोनीज्वाइडस), हजार दाना
(फाइलेंथस निरुरी), दुद्धी (यूफोरबिया हिरटा), कन्कौआ, सफ़ेद मुर्ग, सवां, मोथा
आदि।
खरपतवारों से होने वाली हानियाँ
खरपतवारो के प्रकोप से फसल वृद्धि और उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। समय
रहते इन पर काबू नहीं पाया गया तो ये फसलो की पैदावार में 10-85 % तक कमीं कर सकते
है, लेकिन कभी-कभी यह कमी शत-प्रतिशत तक हो जाती है । दरअसल खरपतवार फसल के साथ स्थान, हवा, प्रकाश, पानी और भूमि में डाले गए पोषक
तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करते है। चूँकि फसलों की अपेक्षा खरपतवार शीघ्र बढ़ने
वाले पादप होते है जिसके कारण वे भूमि से नमीं और पोषक तत्वों का शीघ्रता से
अवशोषण कर लेने से फसल को आवश्यक जल और पोषक तत्वों की कमीं हो जाती है
जिसके फलस्वरूप फसलों की वृद्धि और विकास अवरुद्ध होने से उपज में कमीं हो जाती है। खरपतवार फसल के ऊपर छाया भी करते है जिसके कारण फसल को
पर्याप्त प्रकाश और हवा नहीं मिलने से उनमे प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया ठीक से
संपन्न नहीं हो पाती है जिसका उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । खरपतवारों द्वारा
विभिन्न फसलों की उपज में होने वाली हाँनि सारिणी-1 में दर्शाई गई है।
सारणी-1 : खरीफ फसलों में फसल-खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय एवं खरपतवारों द्वारा उपज में कमीं
फसलें
|
खरपतवार
प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय (बुआई के बाद दिन )
|
उपज में
कमीं (%)
|
खाद्यान्न
फसलें
|
||
धान (सीढ़ी
बुआई)
|
15-45
|
47-86
|
धान
(रोपाई)
|
20-40
|
15-38
|
मक्का
|
30-45
|
40-60
|
ज्वार
|
30-45
|
06-40
|
बाजरा
|
30-45
|
15-56
|
दलहनी
फसलें
|
||
अरहर
|
15-60
|
20-40
|
मूंग
|
15-30
|
30-50
|
उड़द
|
15-30
|
30-50
|
लोबिया
|
15-30
|
30-50
|
तिलहनी
फसलें
|
||
सोयाबीन
|
15-45
|
40-60
|
मूंगफली
|
40-60
|
40-50
|
सूरजमुखी
|
30-45
|
33-50
|
अरण्डी
|
30-60
|
30-50
|
अन्य
फसलें
|
||
गन्ना
|
15-60
|
20-30
|
कपास
|
15-60
|
40-50
|
सारणी 2: विभिन्न फसलों में खरपतवारों द्वारा
पोषक तत्वों का अवशोषण
फसलें
|
नाइट्रोजन
(किग्रा./हे.)
|
फॉस्फोरस
(किग्रा./हे.)
|
पोटाश
(किग्रा./हे.)
|
धान
|
20-37
|
5-14
|
17-48
|
मक्का
|
23-59
|
6-10
|
16-32
|
ज्वार
|
36-46
|
11-18
|
31-47
|
मूंग
|
80-132
|
17-20
|
80-130
|
अरहर
|
28.0
|
24.0
|
14.0
|
मूंगफली
|
15-29
|
5-9
|
21-24
|
सोयाबीन
|
26-55
|
3-11
|
43-102
|
गन्ना
|
35-162
|
24-44
|
135-242
|
स्त्रोत-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर द्वारा प्रकाशित पॉकेट बुलेटिन न. 1/09
इसके अलावा खरपतवार बहुत से कीट और
रोगों को आश्रय प्रदान करते है जिसके कारण फसलो में कीट-रोग का अधिक आक्रमण होता
है। खरपतवारों की उपस्थिति से फसल उत्पाद की गुणवत्ता ख़राब होती है जिससे उत्पाद के मूल्य में भी गिरावट आ जाती है। मनुष्य और जानवरों के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है। नदी और तालाबों में
प्रदूषण फैलाते है और सिचाई तथा जल निकास में भी बाधा पहुचाते है।
खरपतवारों की रोकथाम के उपाय
सफल फसलोत्पादन के लिए आवश्यक है की खरपतवारों की रोकथाम सही समय पर करना
चाहिए जिसके लिए निम्न तरीके अपनाए जा सकते है।
- निवारण विधि : इस विधि में वे सभी शस्य क्रियाए शामिल है जिनके माध्यम से खेतों में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकें जैसे उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी प्रकार से सड़ी गोबर खाद और कम्पोस्ट खाद का प्रयोग, ग्रीष्मकालीन जुताई, खेती की तैयारी, सिचाई नालियों की साफ़-सफाई आदि।
- यांत्रिक विधि : खरपतवारों पर नियंत्रण पाने की यह सरल और प्रभावकारी विधि है। फसल की प्रारंभिक अवस्था में यानि खरपतवार प्रतिस्पर्धा के क्रांतिक समय (सारिणी-1) में फसलों को खरपतवार प्रकोप से मुक्त रखना जरूरी है . सामान्यतः दो निराई-गुड़ाई, पहली बुआई के 20-25 और दूसरी 45 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण हो जाता है।
- रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण: खेती में लागत कम करने के लिए रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण एक कारगर उपाय है क्योंकि इसमें समय, श्रम और पैसा कम लगता है। खरीफ फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए कारगर नींदानाशकों का विविरण सारणी-3 में प्रस्तुत है।
सारिणी-3 खरीफ फसलों में रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण
फसल का नाम
|
खरपतवारनाशी का रासायनिक नाम
|
खरपतवारनाशी
का व्यवसायिक नाम
|
मात्रा (ग्राम/हे.)
|
व्यापारिक मात्र (ग्राम/हे.)
|
प्रयोग का समय
|
धान
|
ब्युटाक्लोर
|
मैचिटी,वीडकिल,
धानुक्लोर
|
1000-1500
|
2000-3000
20-25
किग्रा. (5% दानेदार)
|
बोने के बाद
अंकुरण से पूर्व
|
पेंडीमेथलीन
|
स्टॉम्प,
पेंडी गोल्ड, धानुटॉप
|
1000-1250
|
3000-4500
|
तदैव
|
|
एनिलोफ़ॉस
|
एरोजिन,एनिलोगार्ड
|
300-400
|
1200
|
तदैव
|
|
प्रेटीलाक्लोर
|
सोफिट,रिफिट
|
750-1000
|
1500
|
तदैव
|
|
2,4-डी
|
2,4-डी,
एग्रोडान-48, वीडमार, टेफासाइड
|
750-1000
|
2000-3000
20-25
किग्रा. (4 % दानेदार)
|
रोपाई के
20-25 दिन बाद
|
|
क्लोरीम्यूराँन
+ मेटसल्फ्युरान
|
आलमिक्स
|
4
|
20 (कंपनी
मिश्रण)
|
रोपाई के
20-25 दिन बाद
|
|
फिनाक्साप्राप
ईथाइल
|
व्हिपसुपर
|
70
|
700-750
|
रोपाई के
25-30 दिन बाद
|
|
पाइराजो
सल्फ्युराँन
|
साथी
|
25
|
200
|
रोपाई के 15
दिन बाद
|
|
मक्का,
ज्वार,
बाजरा
|
एट्राजीन
|
एट्राटाफ,
धानुजीन
|
1000
|
2000
|
बुआई के
तुरंत बाद
|
2,4-डी
|
2,4-डी,
एग्रोडान-48, वीडमार, टेफासाइड
|
750
|
बुआई के
20-25 दिन बाद
|
||
सोयाबीन
|
एलाक्लोर
|
लासो
|
1500-2000
|
3000-4000
|
बुआई के 3
दिन के अंदर
|
क्लोरीम्यूरोंन
|
क्लोबेन
|
8-12
|
40-60
|
बुआई के
15-20 दिन बाद
|
|
फिनाक्साप्रोप
|
व्हिप सुपर
|
80-100
|
800-1000
|
बुआई से
20-25 दिन बाद
|
|
इमेजेथापायर
|
परस्यूट
|
100
|
1000
|
बुआई के
15-20 दिन बाद
|
|
मेटलाक्लोर
|
डुअल
|
1000-1500
|
2000-3000
|
बुआई के
3 दिन के अंदर
|
|
पेंडीमेथिलिन
|
स्टॉम्प,
पेंडीगोल्ड
|
1000-1250
|
3330-4160
|
बुआई के
पहले या बुआई के 3 दिन के अंदर
|
|
क्युजालोफॉप
इथाईल
|
टर्गासुपर
|
40-50
|
800-1000
|
बुआई के
15-20 दिन बाद
|
|
अरहर, मूंग,
उड़द
|
पेंडीमेथिलिन
|
स्टॉम्प,
पेंडीगोल्ड
|
1000
|
3330
|
बुआई के
तुरंत बाद
|
एलाक्लोर
|
लासो
|
1500-2000
|
3000-4000
|
तदैव
|
|
फ्लूक्लोरेलिन
|
बासलिन
|
1000-1500
|
2000-3000
|
बुआई के
पूर्व भूमि में छिड़क कर अच्छी तरह मिला दें।
|
|
इमेजेथापायर
|
परस्यूट
|
100
|
..
|
बोने के 20
दिन पश्चात
|
|
मूंगफली,सोयाबीन,
तिल,
रामतिल, सूर्यमुखी
|
पेंडीमेथिलिन
|
स्टॉम्प,
पेंडीगोल्ड
|
1000
|
3330
|
बुआई के
तुरंत बाद
|
फ्लूक्लोरेलिन
|
बासलिन
|
1000-1500
|
2000-3000
|
बुआई के
पूर्व भूमि में छिड़क कर अच्छी तरह मिला दें।
|
|
इमेजेथापायर
|
परस्यूट
|
100
|
बोने के
20-25 दिन पश्चात
|
||
कपास
|
डायुरान
|
एग्रोमेक्स,
कारमेक्स
|
750-1000
|
900-1150
|
बुआई के
पूर्व भूमि में छिड़क कर अच्छी तरह मिला दें।
|
फसल के अनुसार उपरोक्त खरपतवारनाशी की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति
हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिडकाव करें। छिडकाव हेतु नैपशैक स्प्रेयर के साथ
फ़्लैट फैन नोज़ल का प्रयोग करें। किसान भाइयों को अधिकम उपज और गुणवत्ता युक्त उत्पाद लेने के लिए खरपतवार नियंत्रण के लिए उपरोक्तानुसार उपाय अपनाने चाहिए। किसी भी फसल में खरपतवार नाशी प्रयोग करते समय खेत में नमीं होना चाहिए। फसल-खरपतवार पर्तिस्पर्धा के समय हर हाल में खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए तभी बांक्षित फसलोत्पादन और आमदनी प्राप्त हो सकती है। खरपतवारनाशी दवाऐ स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक (जहर) होती है अतः इनका प्रयोग सावधानी पूर्वक करें तथा इनके पॉकेट पर अंकित सभी निर्देशों का पालन करें।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
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