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बुधवार, 22 जनवरी 2020

मधुमक्खी पालन: एक रोचक लघु व्यवसाय



डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

भारत का एक बड़ा भू-भाग विविध फसलों, सब्जियों, फल वृक्षों, फूलों, जड़ी-बूटियों, वनों आदि से आच्छादित है, जो प्रतिवर्ष फूल, फल, बीज के साथ ही बहुमूल्य मकरन्द और पराग को धारण करते है, परन्तु उसका भरपूर सदुपयोग नहीं हो पाता है शहद उत्पादन हेतु मकरंद और पराग ही कच्चा माल है जो हमें प्रकृति से मुफ्त में उपलब्ध है मधुमक्खी ही केवल कीट प्रजाति का जीव है, जो पेड़-पौधों के फूलों से मकरंद एकत्रित कर मनुष्यों के लिए स्वादिष्ट एवं पौष्टिक खाध्य पदार्थ यानि मधु के रूप में परिवर्तित कर सकती है आज मधुमक्खियों के पालन पोषण और उनके सरंक्षण की महती आवश्यकता है मधुमक्खी पालन बेरोजगार युवकों, भूमि-हीन, अशिक्षित एवं शिक्षित परिवारों को कम लागत से अधिक लाभ देने वाला व्यवसाय ही नहीं है, अपितु इससे कृषि उत्पादन में भी 15-25 प्रतिशत की  वृद्धि होती है। भारत में किसानों को खेती के साथ-साथ बिना विशेष प्रयत्न के अतिरिक्त आय दे सकता है। इसके लिए किसान को न तो कोई अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है और न ही फसलों में अतिरिक्त खाद-पानी देना होता है। भारत में शहद उत्पादन के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, राजस्थान,पश्चिम बंगाल, बिहार एवं हिमाचल प्रदेश अग्रणी राज्य है।  इसके अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं उत्तराखंड में भी मधुमक्खी पालन किया जाने लगा है। वर्ष 2016-17 में देश में 94,500 मैट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ ।  अभी हमारे देश में प्रति व्यक्ति शहद की खपत केवल आठ ग्राम है जबकि जर्मनी में यह 1800 ग्राम है। सेहत के लिए अमृत समझे जाने वाले शहद की उपयोगिता  के कारण आने वाले समय में शहद की मांग बढ़ने की संभावनाओं   को देखते हुए देश में मधुमक्खी पालन का सुनहरा भविष्य है।   
                            कब, कैसे और कहाँ करें मधुमक्खी पालन
मित्रवत खेती-मधुमक्खी पालन फोटो साभार गूगल 
मधुमक्खी पालन एक ऐसा उद्यम है जिसके लिए मधु मक्खी पालक किसान के पास अपनी जमीन और भवन होना भी आवश्यक नहीं है। अतः बेरोजगार युवक एवं कृषक अपना स्वयं का मधुमक्खी पालन व्यवसाय शुरू कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर समृद्ध कृषि, स्वस्थ और श्रेष्ठ भारत निर्माण में भागीदार बन सकते है। इस व्यवसाय को कम लागत में घर की छतों में, छज्जों पर, खेत की मेड़ों के किनारे, तालाब के किनारे आसानी से किया जा सकता है। यही नहीं मौन पालक किसान अपनी पूँजी और सामर्थ्य के अनुसार एक बक्से से लेकर अनेक बक्सों से भी काम प्रारम्भ कर सकते है । एक बक्से से एक मौसम में औसतन 20-25 किलो शहद मिल सकता है। मधुमक्खी पालन के लिए जनवरी से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है, लेकिन नवंबर से फरवरी का समय तो इस व्यवसाय के लिए वरदान है, क्योंकि तापमान की दृष्टि से मधुमक्खियों के लिए यह सबसे उपयुक्त समय होता है । बहुफसली क्षेत्र, बाग़-बगीचों, वनाच्छादित क्षेत्रों के आस-पास  मधुमक्खी पालन की व्यापक सम्भानाये संभावनाएं है फसलों में सूरजमुखी,सरसों,रामतिल,गाजर, मूली,सोयाबीन, अरहर,मिर्च आदि, फल वृक्षों में नीबूं,संतरा,मौसमी,आंवला,अमरुद,पपीता,अंगूर,आम आदि तथा शोभाकारी पेड़ों में गुलमोहर,नीलगिरी आदि के बागानों के पास मधुमक्खी पालन सफलतापूर्वक किया जा सकता है
मधुमक्खी पालन लागत:लाभ का गणित  
किसान भाई इस व्यवसाय को पांच कलोनी (पांच बाक्स) से शुरू कर सकते है एक बॉक्स में लगभग में 4000 रुपए का खर्चा आता है । इनकी संख्या को बढ़ाने के लिए समय समय पर इनका विभाजन कर सकते हैं। सामान्यतौर पर 50 बक्से वाली इकाई पर बक्से और उपकरण मिलाकर लगभग दो लाख रूपये की लागत आती है जिसमें 3-4 लाख की आमदनी प्राप्त की जा सकती है।  इसके अलावा आपके पास मधुमक्खियों की संख्या बढ़ जाएगी जिनसे आप अगली बार 100 बक्सों में मधुमक्खी पालन कर अपने मुनाफे को दौगुना कर सकते है।
मधुमक्खी पालन हेतु उपयुक्त प्रजाति
मधुमक्खी परिवार में एक रानी और लगभग 4-5 हजार श्रमिक मक्खियाँ तथा 100-200 नर (ड्रोन) मक्खियाँ पायी जाती है. भारत में मधुमक्खियों की मुख्यतः 4 प्रजातियां पाई जाती है.
1. चट्टानी मधुमक्खी(एपिस डोरसाटा):इसे रॉक बी के नाम से भी जाना जाता है. यह बड़े आकार की होती है. इसके पालन से शहद के एक छत्ते से 35-40 किग्रा प्रति वर्ष शहद प्राप्त किया जा सकता है. यह मक्खी उग्र स्वभाव की होती है।
2. लघु मक्खी (एपिस फ्लोरिया): यह मक्खी छोटे आकार की होती है जो प्रायः झाड़ियों में अपना छत्ता बनाती है। इससे एक छत्ते से लगभग 250-300 ग्राम तक शहद प्रति वर्ष प्राप्त होता है।
3. भारतीय मधुमक्खी( एपिस सेराना): एशियाई तथा भारतीय मूल की इन मधुमक्खियों को भारत के अधिकतर क्षेत्रों में पाला जाता है। भारतीय मधु वंश में 10-20 किग्रा मधु एक वर्ष में प्राप्त किया जा सकता है।
4. पश्चिमी मधुमक्खी (एपिस मेलीफेरा): इसे इटेलियन और यूरोपियन बी के नाम से जाना जाता है. शांत स्वभाव होने के कारण इनका पालन पोषण आसानी से किया जा सकता है. विश्व में इसी मधुमक्खी का पालन अधिक किया जाता है. इस मधुमक्खी द्वारा प्रतिवर्ष 50-150 किग्रा शहद एक छत्ते से प्राप्त किया जा सकता है। 
एक नहीं अनेक फायदे है मधुमक्खी पालन में
मधुमक्खी पालन से शहद के अलावा मोम, प्रोपोलिस,बी वैनम, पराग व रायल जैली प्राप्त होने के साथ-साथ फसल उत्पादन में भी वृद्धि होती है । मधुमक्खी पालन से होने वाली मुख्य लाभ इस प्रकार से है.  
बहुमूल्य शहद: प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ खाध्य पदार्थ मधु यानि शहद प्रदान करने का श्रेय मधुमक्खियों को ही जाता है। नियोजित तरीके से मधुमक्खी  पालन करने से अधिक मात्रा में शहद उत्पादन कर आर्थिक लाभ अर्जित किया जा सकता है। शहद यानि मधु अपने आप में एक संतुलित व पौष्टिक प्राकृतिक आहार है।  शहद में मिठास ग्लुकोज, सुक्रोज एवं फ्रुक्टोज के कारण है। एक चम्मच मधु से 100 कैलोरी उर्जा प्राप्त होती है इसके अलावा प्रोटीन की मात्रा 1-2 प्रतिशत होती है और न केवल प्रोटीन ब्लकि 18 तरह के अमीनो एसिड भी मौजूद होते हैं जो ऊत्तकों के निर्माण एवं हमारे शरीर के विकास में महत्वपूर्ण भुमिका निभाते है। मधु में कई तरह के विटामीन जैसे - बी-1, बी-2 व सी के अलावा अनेक प्रकार के खनिज जैसे पौटेशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, आयरन आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। मधु रक्त वर्धक, रक्त शोधक तथा आयुवर्धक अमृत है। आयुर्वेद में मधु को योगवाही कहा जाता है। आज अमूमन  80 प्रतिशत दवाईयों में मधु का इस्तेमाल किया जा रहा है। बेकरी कनफेक्सनरी उद्योग में भी मधु का उपयोग हो रहा है जैसे मधु जैम और जैली व स्कवैस में भी मधु डालकर उसकी गुणवत्ता को बढाया जाता है। इसी प्रकार से से टॉफी, आइसक्रीम एंव कैन्डी आदि विभिन्न प्रकार की कनफेक्सनरी उद्योगों में भी मधु का बहुत तेजी से उपयोग बढ़ता जा रहा है । शहद के  निर्यात से भारत को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित होती है।
मोम उत्पादन : मोम उत्पादन, मधुमक्खी पालन उद्योग का एक उप-उत्पादन है। यह शहद के छत्तों से मधु निष्कासन के समय प्राप्त छिल्लन और टेढ़े छत्तों से प्राप्त किया जाता है। एक वंश से 200-300 ग्राम तक मोम प्रति वर्ष प्राप्त की जाती है। मोम का इस्तेमाल मोमबत्ती, औषधियां, पोलिश, पेंट तथा वार्निश बनाने में किया जाता है।
फसल उत्पादन में इजाफा: फसलों एवं पेड़ पौधों में परागण क्रिया में मधुमक्खियों का बहुत बड़ा सहयोग होता है। मधुमक्खियों द्वारा पौधां में लगभग 80 से 90 प्रतिशत परागण होता है। मधुमक्खी फूलों पर भ्रमण एवं परागण करती है। इस विशेषता के कारण सब्जियों, फलों तथा तिलहन फसलों के उत्पादन में भारी वृद्धि होती है।
मधुमक्खी पालन में ध्यान रखने वाली बातें
Ø मधुमक्खियों के परिवार को मौसम के अनुसार गर्मियों में छायादार स्थान में रखें एवं सर्दियों में धूप में रखें तथा मौन फ़ार्म के पास शुद्ध पानी का उचित प्रबंध रखें. बरसात के दिनों में मौन परिवारों को गहरी छाया में न रखें. इन्हें हमेशा ऊंचे स्थानों पर रखें जिससे वर्षा का पानी मौन परिवारों तक न पहुंचे.
Ø बरसात के दिनों में मौन परिवारों के द्वार (गेट) छोटे रखें जिससे सिर्फ दो मक्खियाँ आ-जा सके बाकी हिस्सा बंद कर दे ताकि मक्खियों में लूट-मार की समस्या नहीं होगी.
Ø बरसात (जुलाई से सितम्बर) में मौन परिवार के पास ततैया के छत्ते न बनने दें. ततैया दिखने पर उन्हें कीटनाशकों के छिडकाव से नष्ट कर दें.
Ø मौन परिवारों में नई रानी मधुमक्खी का होना आवश्यक है.इसके लिए माह फरवरी-मार्च में पुरानी रानियों को मारकर नई रानियाँ तैयार करें. नई रानियाँ पुरानी के मुकाबले अधिक अंडे देती है जिससे मधुमक्खी के परिवार में वर्कर मक्खियों की अधिक संख्या बनी रहती है.
Ø मौन बक्सों को ऐसे स्थानों पर रखें जहां भरपूर मात्रा में नैक्टर व पराग ( फूल वाले पेड़ पौधे, फसलें) उपलब्ध हो.
Ø  मौन परिवारों के लिए जब भरपूर मात्रा में नैक्टर न हो तो शक्कर का कृत्रिम भोजन के रूप में 50 प्रतिशत घोल रात्रि में रखें.
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