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मंगलवार, 7 जनवरी 2020

ग्रीष्म ऋतु में खरबूजा की बुवाई से भरपूर कमाई

ग्रीष्म ऋतु में खरबूजा की बुवाई से भरपूर कमाई   
  
 डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रमुख वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

खरबूजा फल फोटो साभार गूगल 
रबी फसलों की कटाई के बाद ग्रीष्मकाल में नदियों के कछार में तथा खाली पड़े खेतों में किसान भाई खरबूजा, तरबूजा,ककड़ी आदि फसलों की खेती कर अपनी आमदनी में बढ़ोत्तरी कर सकते है। कम समय और सीमित संसाधनों में लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए खरबूजे की खेती वरदान सिद्ध हो सकती है. स्वाद और सुगंध में बेमिसाल खरबूजा  (कुकुमिस मेलो) ग्रीष्म ऋतू का लाजवाब फल  है। खरबूजे के कच्चे फलों का उपयोग सब्जी तथा पके फलों को  सभी वर्ग के लोग बड़े चाव से खाते हैं। इसके पके हुऐ फल अत्यंत लोकप्रि‍यमीठे, शीतल, मृदुल वि‍‍‍‍‍‍रेचक एवं प्यास को शांत करने वाले होते हैं। खरबूजे को  गर्मियों का हेल्थी फ़ूड माना जाता है क्योंकि खरबूजे में 90 प्रतिशत से अधिक पानी के  साथ-साथ शर्करा, प्रोटीन,रेशा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, विटामिन बी, कैल्शियम, फास्फोरस और लौह तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। खरबूजे का फल गर्मियों में तन और मन को तरावट देने के साथ-साथ सेहत के लिए भी उपयोगी है । इसके बीज भी खाने योग्य स्वादिष्ट और पोषक होते हैं । इसके बीज की गिरी (मगज) को मेवे के रूप में विशेषकर मिठाइयों को स्वादिष्ट बनाने में किया जाता है  इसके बीज की गिरियों को पीसकर ग्रीष्मकाल में जायकेदार पेय भी बनाया जाता है इसके बीज में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, जो दिल से जुडी बीमारियों को दूर रखने में मदद करता है ।
भारत के मैदानी क्षेत्रों से लेकर नदियों के कछारों में ग्रीष्काल में  खरबूजे की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। अब उन्नत किस्मों के इस्तेमाल एवं आधुनिक तकनीक को अपनाकर खरबूजे को वर्ष भर उगाकर आकर्षक मुनाफा कमाया जा सकता है। यह कम समय एवं सीमित संसाधनों में उगाई जा सकने वाली एक  नकदी फसल है इसकी खेती मुख्यतः उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, बिहार, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडू आदि राज्यों के गर्म एवं शुष्क क्षेत्रों में की जाती है। अग्र प्रस्तुत उत्पादन तकनीक के माध्यम से किसान भाई तरबूज की खेती से अधिकतम उत्पादन एवं आमदनी अर्जित कर सकते है

                                    ऐसे करें खरबूजे की लाभदायक खेती 

उपयुक्त जलवायु
खरबूजा की बेहतरीन फसल फोटो साभार गूगल 
खरबूजे के सफल उत्पादन हेतु गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है । बीज के अंकुरण एवं पौध वृद्धि के लिए 27  से 30  डिग्री सेल्सियस तापक्रम अच्छा होता है। फल पकते समय मौसम शुष्क तथा पछुआ हवाएं चलने से फलों में मिठास बढ़ जाती है खरबूजे की फसल को पाले से अधिक हानी होती है फल पकने के समय यदि भूमि में अधिक नमी रहेगी तो फलों की मिठास कम हो जाती है फसल पकने के दौरान धुप वाला शुष्क मौसम होने पर फल मीठा स्वाद होता है तथा व्यापार के लिए भारी मात्रा में फल उत्पादन होता है।
भूमि का चुनाव  तथा खेती की  तैयारी
खरबूजे को विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जाता है परन्तु 6-7 पी एच मान तथा उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। नदियों के किनारे कछारी भूमि में खरबूजे की खेती बहुतायत में की जाती है फसल की उचित वानस्पतिक वृद्धि एवं अधिकतम उपज के लिए खेत में पर्याप्त जीवांश मात्रा का होना बहुत ही जरूरी है खेत की पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें। इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिये।  खेत की आखिरी जुताई के समय ही खेत में 10 से 12 टन  सड़ी गोबर की खाद को अच्छी प्रकार मिला देना चाहिये।
उन्नत किस्मों का चयन
खरबूजे की उन्नत एवं संकर किस्मों की खेती से गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन एवं मुनाफा अर्जित किया जा सकता है. अतः किसान भाइयों को अग्रवर्णित किस्मों के बीज किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान से क्रय कर बुवाई हेतु इस्तेमाल करना चाहिए
पूसा शरबती
इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया है इसका छिलका, जालीदार, धारीदार व धूसर रंग का होता है और गूदा मोटा व गहरे नारंगी रंग का होता है। कुल धुलनशील शर्करा की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत तक होती है। इसकी औसत पैदावार 150 से 170 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर होती है।
पूसा मधुरस
इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली द्वारा विकसित यह किस्म 90-95 दिनों में तैयार हो जाती है. इसके फल चपटे और चमकीले पीले रंग के 10 धारियों वाले होते हैं। गूदा गहरे नारंगी रंग का और बहुत रसदार होता है। कुल घुलनशील शर्करा की मात्रा 11-13 % तक होती है। फल का भार लगभग 1 किग्रा तथा औसत उपज 180 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है ।
पूसा रसराज
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली से विकसित खरबूजे की यह  संकर किस्म है इसका गूदा हल्का हरे रंग का होता है। यह क़िस्म 75 से 80 दिन में पक जाती है । इसकी पैदावार 200 से 250 कुंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
हरा मधु
पंजाब कृषि वि.वि. लुधियाना  द्वारा विकसित इस किस्म के फल 100-110 दिन में पककर तैयार हो जाते है फल गोलाकार होते हैं, जिन पर हरी धारियां पाई जाती है।फल का गूदा भी हल्का हरा एवं रसीला होता है, जिसमें 12  प्रतिशत तक मिठास होती है। फलों का औसतन भार  1 किग्रा तथा उपज 150 से 170 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
पंजाब सुनहरी
इस किस्म का विकास पंजाब कृषि वि.वि. लुधियाना द्वारा किया गया है इस किस्म के फल बोने के 80 दिन बाद तैयार हो जाते है।  फल का भार 700 -800 ग्राम होता है फल पकने पर हलके पीले रंग के, गूदा नारंगी रंग का रसदार एवं  स्वादिष्ट होता है भण्डारण एवं परिवहन के लिए उपयुक्त है।  फलों की औसत उपज 175-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
दुर्गापुर मधु
इस किस्म का विकास उदयपुर वि.वि. के सब्जी अनुसन्धान केंद्र दुर्गापुर राजस्थान द्वारा किया गया है इसके फल गोलाकार होते है छिलका हरे रंग का होता है जिस पर हरे रंग की धारियां होती है।  फल का गूदा हलके हरे रंग का होता है जो खाने में अत्यंत मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। इस किस्म से 180-200  क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त होता है ।
अर्का राजहंस
भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान बंगलौर कर्नाटक द्वारा विकसित खरबूजे की यह एक अगेती व चूर्णी फफूंदी रोग प्रति रोधी  किस्म है । इसके फल माध्यम आकार के  गोल व थोडे अंडाकार होते हैं । फलों में 11-14 %तक मिठास होती है फलों का गूदा ठोस व सफ़ेद होता है। इसकी भण्डारण और यातायात क्षमता बहुत अच्छी है । एक फल का औसत भार 1.25-2.0 किलो तथा उपज 250-280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर  तक प्राप्त होती है। निर्यात के लिए यह एक अति उत्तम किस्म है
अर्का जीत
भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान बंगलौर विकसित यह एक अगेती किस्म है जिसके फल छोटे नारंगी रंग के और देखने में अत्यंत आकर्षक लगते है गूदा सफ़ेद और मध्यम ठोस तथा मनमोहक सुगंध लिए होता है इस किस्म में टमाटर से अधिक विटामिन सी पाया जाता हैफल का औसत भार 300-500 ग्राम एवं उपज 150-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर  तक मिल जाती है
आर एम- 43
कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा, जयपुर द्वारा विकसित खरबूजे की यह किस्म 80-85 दिनों बाद प्रथम तुड़ाई हेतु तैयार हो जाती है । फल हरी धारियों युक्त होते हैं । इसके एक फल का  औसतन वजन 550 ग्राम होता है। फलों का गूदा हरा एवं सुगंधित होता है जिसमें 12 से 14 प्रतिशत तक मिठास होती है । फलों में  लम्बे समय तक भण्डारण एवं परिवहन क्षमता होती है ।
एम एच वाई- 5
कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा, जयपुर द्वारा विकसित इस किस्म के फल बुवाई के 95 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है इसके  फल चपटे, गोल, चिकने तथा हल्के पीले रंग के होते है फलों का  गूदा हल्का हरा, मुलायम जिनमें 13 से 15  प्रतिशत  मिठास होती है फलों का औसतन भार 700 से 800 ग्राम तथा प्रति  हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल फल उत्पादन होता है
आर एन- 50
कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा द्वारा विकसित इस किस्म के फल  बुवाई के 80 से 85 दिनों में पक कर तैयार हो जाते है इस किस्म के फल गोल, छिलका हरा पीला होता हैं गूदा हरा एवं मिठास 14 से 16 प्रतिशत तक होती है फलों का औसतन वजन 500 ग्राम तथा प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल उत्पादन होता है।   
निजी क्षेत्रों द्वारा विकसित खरबूजे के प्रभेद
             उपरोक्त किस्मों के अलावा पूना बेस्ड ताईवानी कंपनी नो योर सीड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, यूनाइटेड जेनेटिक्स और सेमिनिस कंपनी द्वारा खरबूजे के अनेक बेहतरीन प्रभेद विकसित किये गये है।  ताईवानी कंपनी  के प्रभेद मुस्कान, बॉबी और त्रिशा की आधुनिक तरीके से खेती करके किसान भाई आकर्षक लाभ कमा रहे  है।  इनके बीज महंगे होते है परन्तु इनके फलों की बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है. इनकी खेती आधुनिक तरीके से करना अधिक फायदेमंद होता है. इन किस्मों को खुले खेत और पालीहाउस में उगाया जा सकता है। 
बीज बुवाई का उचित समय 
सामान्यतौर पर खरबूजे की बुवाई नवम्बर- मार्च तक की जा सकती है।  सुरक्षात्मक उपाय उपलब्ध होने पर नदियों के किनारों पर खरबूजे की बुवाई नवम्बर-दिसंबर में की जा सकती है। मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई फ़रवरी मार्च में की जाती है। अगेती फसल लेने के लिए नवम्बर-दिसंबर में खरबूजे के बीजों की बुवाई हेतु पोलीबैग में  पौध तैयार करना अच्छा रहता है।
बीजदर एवं उपचार
खरबूजा की खेती के लिए आमतौर पर सीधी बुवाई के लिए 3 से 4 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। प्लास्टिक की थैलियों में बुवाई के लिए दो बीज प्रति थैली (लगभग 15 से 20 सेमी लंबा तथा 8 सेमि. चौड़ी थैली) के हिसाब से 500 से 550 ग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर हेतु पर्याप्त होती है। यह थैलिया नीचे से छेद की हुई होनी चाहिए। थैलियों में गोबर की खाद मिट्टी बराबर मात्रा में होनी चाहिए। बीजों को बोन से पहले थाइरम या  कार्बेन्डाजिम 2- 3 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए। बीज को 24- 36 घंटे तक पानी में भिगोकर रखने के बाद बुवाई करने से अच्छा अंकुरण होता है एवं फल  7-10 दिन पहले तैयार हो जाते है।
 बुवाई की विधि

मैदानी क्षेत्रों में खरबूजे की बुआई  से 1.5 से 2.5 मीटर की दूरी पर 30-40 से.मी. चौड़ी नालियाँ बनाई जाती है. इन नालियों के किनारों (मेड़) पर  बीज की बुवाई 50-60 से.मी. की दूरी तथा 1.5-2.0 से.मी. की गहराई पर करना चाहिए बुवाई पश्चात बीजों को   महीन मृदा या गोबर की खाद से ढक देते हैं। अंकुरण के बाद प्रति थाल दो स्वस्थ पौधे छोड़कर शेष उखाड़ देना चाहिए ।

         नदी के कछार में खरबूजा की बुवाई गड्ढे बनाकर की जाती है । इसमें 60 x 60 x 60 से.मी. आकार  के गड्ढे  1.5 से 2.5 मीटर की दूरी पर बनाए जाते हैं। इन गड्ढों में 1:1:1 के अनुपात में गोबर की सड़ी खाद, मिट्टी एवं बालू मिलाकर भर दिया जाता है। इसके बाद प्रत्येक गड्ढे में 3-3 बीज की बुवाई कर हल्का पानी देना चाहिए ।

आधुनिक तरीके से खरबूजा की खेती

          मल्चिंग विधि से खरबूजे की खेती करने पर अधिक उपज के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण फल प्राप्त होते है. इस विधि में खेतों में बड़ी-बड़ी नालियाँ बनाकर उन पर पोलिथीन बिछाई जाती है।  फल पोलिथीन के ऊपर ही रहता है, जिससे फल स्वस्थ रहते है।  इसके अलावा इसमें पानी की खपत कम होती है, खरपतवार प्रकोप नहीं होता है।  पानी के साथ (बूँद-बूँद सिंचाई-ड्रिप) उर्वरक और पौध सरंक्षण दवाइयों का आवश्यकतानुसार प्रयोग  किया जा सकता है।  
 जरुरी है खाद एवं उर्वरक का  प्रयोग 
खेत की अंतिम जुताई के बाद नालियों या थालों  में 10  से 12 टन  अच्छी प्रकार सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिट्टी में अछि प्रकार मिलाना चाहिये इसके अतिरिक्त उर्वरक के रूप में 80 किलोग्राम नत्रजन, 75 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से नालियों/थालों  में डालना चाहियेनत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत में नालियां या थाले बनाते समय देना चाहिये नत्रजन की शेष  मात्रा दो बराबर भागों में बांटकर  खड़ी फसल में जड़ों  के पास बुआई के 20 एवं 40 दिनों  बाद देनी चाहिये। इसके अलावा बोरान, कैल्शियम तथा मोलिब्डेनम का 3 मिग्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर पर्णीय छिडकाव करने से फलों की संख्या एवं उपज में बढ़ोत्तरी होती है ।
फसल की मांग के अनुरूप सिंचाई  करें
खरबूजे की पौध वृद्धि एवं  भरपूर उत्पादन के लिए खेत में पर्याप्त नमी का होना अत्यन्त आवश्यक है। थालों में लगाये गये पौधों को नालियों से सिंचाई करना चाहिए। शुरुआत में हर सप्ताह पानी देने की आवश्यकता पड़ती है पौधों की बढ़वार, फूल आने से पहले  एवं फल विकास के समय खेत में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए । फल पकते समय सिंचाई बंद कर देना चाहिए, जिससे फलों में मिठास बढ़ जाती है ।
सिंचाई जल की उपलब्धता होने पर बूंद-बूंद तकनीकी अपनाकर खरबूजा उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, साथ ही इस विधि में सिंचाई जल की बचत भी होती है। शुष्क क्षेत्रीय जलवायु में खरबूजे की खेती के लिए सिंचाई की बूंद-बूंद तकनीक सर्वोत्तम रहती है| इस प्रणाली में 4 लीटर प्रति घण्टे के ड्रिपर से 3 से 4 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 घण्टे सिंचाई करनी चाहिए।
निराई एवं गुड़ाई 
पौध वृद्धि एवं खरपतवारों के नियंत्रण हेतु सिंचाई करने के बाद बाद निराई-गुड़ाई कर पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिये बुवाई के तुरंत बाद एलाक्लोर 50 ई.सी. या ब्युटाक्लोर 50 ई.सी.  2  कि.ग्रा। प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करने से खरपतवार नियंत्रित रहते है ।

कीट रोगों से फसल की सुरक्षा

कद्दू का लाल कीट
खरबूजे के बीज पत्र एवं 4-5 पत्ति अवस्था पर इस कीट का अधिक आक्रमण होता है अधिक प्रकोप होने पर पौधे पत्ती रहित हो जाते है।  इस कीट की रोकथाम के लिये 2 ग्राम कार्बारिल या 3 मि. ली. प्रति लीटर या डाईक्लोरोवास 76 ईसी 1.25 मिली प्रति लीटर  पानी में घोल बनाकर 10 दिनों के अंतराल पर पर्णीय छिडकाव करें ।  दवाई छिड़कने के बाद 15 दिन तक फल न तोड़े और न  ही खाने में इस्तेमाल करें
फल  मक्खी
इस कीट से ग्रसित फल सड़ कर नीचे गिर जाते है।   इस कीट की रोकथाम के लिए कार्बेरिल 50 डव्ल्यु पी 2 ग्राम प्रति लीटर या मैलाथियान 50 ईसी 2 मिली प्रति लीटर पानी में 10 % गुड़ मिलाकर  250 जगहों पर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रखना चाहिए। इसके अलावा डाईक्लोरोवास 76 ईसी 1.25 मिली प्रति लीटर की दर से छिडकाव करने से भी कीट नियंतरण हो जाता हैइसके साथ समय पर रोगग्रस्त फलों को निकाल कर नष्ट करें । दवाई छिड़कने के बाद 15 दिन तक फल न तोड़े और न  ही खाने में इस्तेमाल करें
चूर्णित आसिता (पाउडरी मिल्डयू) :  इस रोग के प्रकोप से बेलों, पत्तियों और तनों पर सफेद चूर्ण जमा हो जाता है जिससे पौधे सफेद या धुंधले धूसर दिखाई देने लगते है । इस रोग की रोकथाम के लिए 2 ग्राम बाविस्टीन प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल कर छिडकाव करना चाहिए।
मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू ) : इस रोग के प्रभाव से पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के घब्बे पड़ जाते हैं।  बदली एवं नम मौसम में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है रोग  की रोकथाम के लिए प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मैन्कोजेब  घोलकर छिडकाव करना चाहिए।
फलों की तुड़ाई
खरबूजे  की किस्मों के अनुसार बुवाई के लगभग 80-100 दिनों के बाद फल पककर तैयार हो जाते है। फलों का रंग बदलने (पीला पड़ने) तथा खरबूजे जैसी खुशबू आने पर फलों की तुड़ाई कर लेना चाहिए फल पकने पर पुष्प वृंत के आधार का रंग हरे से मोम के रंग जैसा होने लगता है पके हुए फल डंठल से आसानी से अलग हो जाते हैं। फलों की तुड़ाई के लिए सुबह का समय उपयुक्त होता है।
पैदावार और मुनाफा 
खरबूजे की उपज जलवायु, किस्म एवं सस्य प्रबंधन पर निर्भर करती है। वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर सामान्यतौर पर खरबूजे की औसत पैदावार 150 से 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। उन्नत तरीके से खरबूजा की खेती करने पर अमूमन 80-90 हजार रूपये की लागत आती है।  बाजार में खरबूजा 20 रूपये प्रति किलो की दर से बिकते है तो खरबूजे की एक फसल से (लगभग तीन माह में) 200 क्विंटल पैदावार आने पर 3 लाख रूपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया जा सकता है। खरबूजे का बीज उत्पादन कर किसान भाई अतिरिक्त आमदनी अर्जित कर सकते है। 
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