डॉ.गजेन्द्र
सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर
(सस्य विज्ञान)
इंदिरा
गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि
महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
देश
में खाद्य तेलों के कम उत्पादन के कारण बढती आबादी की पूर्ति के लिए प्रति वर्ष
विदेशों से भारी मात्रा में खाध्य तेल
आयात करना पड़ रहा है। सूरजमुखी (हेलिएन्थस एनस एक शीघ्र तैयार होने वाली, प्रकाश
एवं ताप के प्रति असंवेदनशील और सूखा को
सहने वाली महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है । सूरजमुखी की खेती वर्ष भर यानी खरीफ, रबी और
ग्रीष्म ऋतु में की जा सकती है। खरीफ में फसल पर अनेक प्रकार कीट रोगों का प्रकोप
होता है तथा पर्याप्त प्रकाश न मिलने के कारण फूल छोटे होते है और दानों का विकास
कम होता है जिससे उपज कम मिलती है। ग्रीष्मकाल में उत्तम जलवायु के साथ-साथ
खाद-उर्वरक एवं जल उपयोग दक्षता बेहतर होने की वजह से अधिक उत्पादन प्राप्त होता
है। कम लागत और कम समय (तीन माह) में तैयार होने वाली इस फसल से किसान बेहतर
मुनाफा अर्जित कर सकते है। सिंचाई संपन्न धान-गेंहूँ फसलों के बाद सूरजमुखी की
खेती से किसान भाई अपनी आमदनी बढ़ा सकते है। सूरजमुखी की खेती न केवल आर्थिक रूप से
फायदेमंद है अपितु इसके तेल और बीजों का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत
लाभकारी माना जाता है।
सूरजमुखी
बीज: पौष्टिक गुणों का खजाना
सूरजमुखी की लहलहाती फसल फोटो साभार गूगल |
ग्रीष्मकाल में सूरजमुखी की खेती ऐसे करें
उपयुक्त
मृदा एवं खेत की तैयारी
सूरजमुखी की खेती सभी प्रकार की
मृदाओं में की जा सकती है। किन्तु उचित जल
निकास व उदासीन अभिक्रिया वाली (पीएच मान 6.5 -8.0) दोमट से भारी मृदाएं अच्छी
समझी जाती है । मृदा की जलधारण क्षमता एवं कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अच्छी होनी
चाहिए । सामान्यतः खरीफ में असिंचित एवं रबी - जायद में इसे सिंचित क्षेत्रों में
उगाया जाता है । खेत में पर्याप्त नमी न होने की
दशा में पलेवा (हल्की सिंचाई) देकर खेत की जुताई करनी चाहियें। इसके बाद देशी हल
से 2 से 3 बार जुताई कर मिट्टी
भुरभुरी बना लेनी चाहिए। इसके बाद खेत में पाटा चलाकर समतल कर बुवाई
करना चाहिए ।
उन्नत
प्रजातियों के बीज का चयन
सूरजमुखी
की अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों अथवा संकर प्रजातियों का बीज विश्वशनीय प्रतिष्ठानों
से क्रय करना चाहिए। अधिक उपज के लिए संकर किस्मों के बीज का प्रयोग करें परन्तु
इन प्रजातियों से पैदा किये गए बीज की पुनः बुवाई न करें अर्थात अगले वर्ष संकर
प्रजाति का न्य बीज ही प्रयोग करें. सूरजमुखी की उन्नत किस्मों एवं संकर
प्रजातियों की विशेषताएं अग्र सारणी में प्रस्तुत है:
उन्नत
किस्म एवं संकर प्रजातियों की विशेषताएं
|
बोआई
का समय
सूरजमुखी की बंसलकालीन फसल को बोने का
उचित समय फरवरी का प्रथम से द्वितीय पखवाड़ा है. यह फसल मई के अंतिम या जून के
प्रथम सप्ताह तक तैयार हो जाती है । देर से बोआई करने पर फसल देर से पकती है और
मानसून की बारिस शुरु हो जाती है जिससे फसल कटाव एवं गड़ाई में समस्या हो सकती है।
बीज
एवं बुवाई
सामान्य
किस्मों की बुवाई हेतु 12-15 किग्रा बीज और संकर प्रजातियों के लिए 5-6 किग्रा
प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। बुवाई से पूर्व बीज को रात में पानी में
भिंगोकर रखने के उपरान्त सुबह छाया में सुखाकर थिरम या बाविस्टीन 3 ग्राम प्रति
किलो बीज दर से उपचारित कर बुवाई करना चाहिए। बोआई सदैव लाइनों में करें,
संकुल
एवं बौनी प्रजातियों को 45 से.मी. तथा संकर एवं लम्बी प्रजातियों को 60 से.मी.
दूरी पर बनी कतारों में बोयें तथा पौधे से पौधे की दूरी 20-30 से.मी. रखें । बीज
की गहराई 3-4 सेमी रखें । बोआई के 15-20 दिन बाद विरलीकरण कर पौधे से पौधे की दूरी
20-30 से.मी. स्थापित कर लेना चाहिए ।
संतुलित
पोषक तत्व प्रबंधन
सूरजमुखी की सफल खेती हेतु मृदा परिक्षण के आधार पर
उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. इसकी खेती में 3 से 4 टन
गोबर की कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टर का प्रयोग लाभप्रद पाया गया है। सामान्यतः
फसल में 80-100 कि.ग्रा. नत्रजन,
60
कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है । नत्रजन की आधी से दो तिहाई मात्रा बोते समय तथा शेष 25-30
दिन बाद या पहली सिंचाई के समय खड़ी फसल में कूंड़ों में प्रयोग करना चाहिए । फास्फोरस एवं
पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय दें ।
फास्फोरस को सिनगले सुपर फोस्फेट के रुप में देने से फसल के लिए आवश्यक
सल्फर तत्व की पूर्ति हो जाती जाती है। सल्फरधारी उर्वरकों के प्रयोग से सूरजमुखी
के बीज में तेल प्रतिशत में वृद्धि होती है। रश्मि पुश्प्कों के खिलते समय मुंडकों
पर २% बोरेक्स एवं 1% जिंक सल्फेट के छिडकाव से बीजों के भराव, उपज एवं तेल
प्रतिशत में वृद्धि होती है।
समय पर सिंचाई
जरुरी
सूरजमुखी
की अच्छी फसल के लिए हलकी मृदाओं में 4 से 5 तथा भारी भूमि में 3 से 4 सिंचाइयां की आवश्यकता होती है। आवश्यकतानुसार पहली सिंचाई बोने के 20-25 दिन
बाद आवश्यक है । तदोपरान्त समान्यतया 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की आवश्कता
पड़ती है । वानस्पतिक, कली, फूल
एवं दाने पड़ते समय खेत में नमी की कमी होने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए । फूल
विकसित होने की अवस्था में सिंचाई सावधानी पूर्वक करना चाहिए जिससे पौधे गिरने न
पायें.
अंतर्कर्षण
एवं खरपतवार नियंत्रण
पौधों की समुचित बढ़वार एवं खरपतवार
नियंत्रण हेतु बोने के 15-20 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें तथा दूसरी गुड़ाई के
समय पौधों पर मिट्टी भी चढ़ा दें, जिससे पौधे
तेज हवा के कारण गिरने नहीं पाते। खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डिमैथेलिन 30 इसी की 3.3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टर के हिसाब से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के बाद 1 से 2 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।
परसेचन क्रिया : सूर्यमुखी में परागण (निषेचन) की क्रिया मुख्यतः भौरों एवं मधुमक्खियों के माध्यम से संपन्न होती है। इसमें बीजों के विकास के लिए परसेचन क्रिया अत्यंत आवश्यक है। परागण हेतु पर्याप्त संख्या में भौरें एवं मधुमक्खियां
नहीं आने पर पुष्प मुंडको में बीज का समुचित विकास नहीं हो पाता है । इसके निदान
के लिये अच्छी तरह फूल खिल जाने पर हाथ में दस्ताने पहनकर या किसी मुलायम रोयेदार कपड़े को लेकर सूरजमुखी के मुंडको पर चारों ओर फेरना चाहिए। पहले फूल के किनारे वाले भाग पर, फिर बीच के भाग पर यह क्रिया प्रातःकाल 8 बजे तक संपन्न कर लेना चाहिए। पुष्प मुंडको में हाथ से कपड़ा फेरने का कार्य 15 से 20 प्रतिशत फूल आने पर लगभग 15 दिन तक करना चाहिए ।
कीट-रोगों
से फसल सुरक्षा
दीमक व कटुवा कीट बीज अंकुरण एवं पौध
विकास के समय फसल को नुकसान करते हैं । इनकी रोकथाम के लिए बुवाई के पहले क्लोरपायरीफ़ॉस
6 लीटर मात्रा को 600-700 लीटर पानी में घोलकर खेत में छिड़ककर मिट्टी में मिला
देना चाहिए । खड़ी फसल पर इन कीड़ों का प्रकोप
दिखने पर सिंचाई जल के साथ क्लोरपाइरीफास 20 ईसी दो से तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
हरा
फुदका,
बिहार
की बालदार सूड़ी,
तम्बाकू
की सूड़ी,
चेंपा,
सफेद
मक्खी तथा रस चूसने वाले अन्य कीड़ों की रोकथाम के लिए मिथाइल ओडिमेटान 25 ईसी एक लीटर मात्रा का 600 से 800 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।
ग्रीष्मकालीन फसल में जड़ तथा तना सड़न,
फूल
गलन और झुलसा रोग प्रकोप की संभावना रहती हैं । इन रोगों से बचने के लिए बुवाई
पूर्व बीजों का उपचार करना आवश्यक है। खड़ी फसल में इन रोगों के नियंत्रण हेतु कापर ऑक्सिक्लोराइड 1.5 से 2 लिटर को 800 से 900 लिटर पानी में घोल बनाकर 15-15 दिन के अन्तराल पर दो छिडकाव करे। ध्यान रहें, सूरजमुखी फसल में फूल आने के बाद किसी भी प्रकार के कीटनाशक/रोगनाशकों का इस्तेमाल न करें अन्यथा परसेचन क्रिया के लिए आवश्यक मधुमक्खी एवं भौरों की संख्या कम हो सकती है।
पशु
पक्षियों से सुरक्षा
सूरजमुखी की फसल को मुख्यतः नीलगाय,
जंगली
सुअर,
बंदर,
तोता,
कौआ
आदि मुण्डक में दाना भरते समय भारी नुकसान करते हैं । अतः इन पशु-पक्षियों से फसल
को बचाना अति आवश्यक होता है। आजकल बाजार में पक्षी उड़ाने वाले टेप (एल्यूमिनियम) उपलब्ध
हैं। खेत में फसल से अधिक ऊॅचाई पर चारों
तरफ एवं खेत में आड़े तिरछे लकड़ी/बांस गाड़कर उन पर टेप बाँधने से चिड़ियों/तोते से फसल को बचाने में सहायता
मिलती है। बाजार में जूट, रेशम एवं
धागे से बने जाल भी उपलब्ध है जिनसे फसल की सुरक्षा की जा सकती है।
कटाई
एवं मड़ाई
जब
सूरजमुखी के मुण्डक (फूल) का पिछला भाग हल्के पीले-भूरे रंग का होने लगे तभी फसल
के मुण्डकों को काटकर 5-6 दिन तेज धूप में सुखाकर डण्डे से पीटकर दाने निकाल लिए
जाते हैं । आजकल बाजार में सूरजमुखी थ्रेसर उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से सूरजमुखी
की मड़ाई की जा सकती है । सूरजमुखी के बीज को अच्छी प्रकार से सुखाकर (नमीं स्तर 5-6
%) भंडारित करें अथवा बाजार में बेचने की व्यवस्था करना चाहिए।सूरजमुखी की मड़ाई के तीन माह के अन्दर तेल
निकालने (पिराई) का कार्य कर लेना चाहिए अन्यथा नमीं के कारण तेल की गुणवत्ता खराब
हो सकती है।
उपज
एवं आमदनी
सामान्यतौर
पर उपरोक्तानुसार वैज्ञानिक विधि से सूरजमुखी की खेती करने पर लगभग 22-28 कुन्तल
बीज एवं 80-100 कुन्तल डण्ठल प्रति हैक्टर पैदा किये जा सकते हैं। केंद्र सरकार ने वर्ष
2019-20 के लिए सूरजमुखी
बीज का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5388 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। उक्त
भाव से सूरजमुखी की उपज बेचने पर 1,18,536 से 1,50,864 रूपये प्रति हैक्टर की आमदनी प्राप्त हो सकती है जिसमें
25000 रूपये प्रति हेक्टेयर की उत्पादन लागत घटा देने से मात्र 90-100 दिनों में 93,536
से 1,25,864 रूपये शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है। सूरजमुखी की खेती के साथ-साथ मधुमक्खी पालन करने से सूरजमुखी उपज में 10-15 प्रतिशत उपज में इजाफा होने के अलावा बहुमूल्य शहद का उत्पादन प्राप्त कर अतिरिक्त लाभ प्राप्त किया जा सकता है
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