देशवासियों
की थाली में मिलावट के जहर का कहर
डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
दूषित जल और वायु से त्रस्त
आदमी अब मिलावटी और नकली खाद्य पदार्थो से बेहाल है। खाद्य-पदार्थ मनुष्य जीवन की
सबसे सामान्य एवं अनिवार्य वस्तु है। इस पर ही जीवन की सारी गति निर्भर है। बल, बुद्धि, विद्या, ओज-तेज और शक्ति-सामर्थ्य का मूलभूत पदार्थ हमारा भोजन ही तो है। शुद्ध, पौष्टिक और विश्वस्त आहार से ही मनुष्य स्वस्थ
एवं सामर्थ्यवान् बन सकता है । एक औसत शहरी भारतीय खाने-पीने पर सबसे अधिक खर्च करता
है। खाने-पीने में होने वाले व्यय में सबसे ऊपर अनाज और दालें, फल और सब्जियों के बाद दूध
एवं दूध से बने उत्पाद, अंडा, मछली, खाने का तेल आदि आते हैं। खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी का
फलता-फूलता कारोबार मानवीय स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। आज चाहे मांसाहार हो या फिर शाकाहार, ऐसा कोई खाद्य पदार्थ नहीं है, जो विषैले
कीटनाशक और मिलावटी पदार्थो से अछूता बच पाया हो। अधिक धान कमाने की लालसा के फेर में मिलावटखोर आपकी थाली में जहर परोस रहे
हैं । बाजार में उपलब्ध खानपान की अमूमन सभी वस्तुओं मसलन दूध, दही,
मक्खन,पनीर, खोवा, घी, तेल, मिठाई, मिर्च-मसाले, दाल, आटा, बेसन, चीनी, नमकीन
आदि रोजमर्रा की वस्तुओं में मिलावट का खेल बदस्तूर जारी है।
मिलावटी और दूषित खाद्य पदार्थो के सेवन का परिणाम है कि देश में कैंसर, मधुमेह, ह्रदयाघात, अलसर और दमें जैसी बीमारियां बहुत तेजी से पाँव पसार रही है । भारत की
अमूमन पूरी आबादी मिलावटी खाध्य और पेय पदार्थ खाकर जी रही है। हमारे बच्चे इन
मिलावटी सामानों को खाकर बड़े हो रहे है तो देश की आने वाली युवा पीढ़ी कैसे स्वस्थ
और ताकतवर बनेगी, यह एक यक्ष प्रश्न है ?
खाद्य पदार्थों में मिलावट फोटो साभार गूगल |
किसे कहते है मिलावट
जब खाध्य पदार्थों में उनसे मिलता-जुलता कोई ऐसा घटिया
किस्म का पदार्थ मिला दिया जाये जिससे उसकी गुणवत्ता तथा शुद्धता पर नकारात्मक
प्रभाव पड़े तो इसे भोज्य पदार्थों में मिलावट कहते है। भोज्य पदार्थों में मिलावट
प्रमुख रूप से तीन प्रकार से की जाती है।
1.पहला
भोज्य पदार्थों को आकर्षक बनाने तथा रंग उभारने हेतु हानिकारक तत्वों को मिलाया
जाता है. उदहारण के लिए मिठाइयों तथा मसालों का रंग उभारने हेतु उनमें रंग मिलाना।
2.
भोज्य पदार्थों में मिलावट के लिए उनमेस सस्ते तथा घाटियाँ किस्म के पदार्थ जैसे
भोज्य पदार्थों की घटिया किस्म, कंकड़, रेट आदि मिला दिया जाते है। जैसे सरसों के
तेल में अर्जिमोन खरपतवार के बीजों का तेल मिलाकर उपभोक्ता को ठगना और उसके
स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना।
3.भोज्य
पदार्थों में से अमूल्य पोषक तत्वों को निकाल कर अशुद्ध पदार्थो को मिलाना. जैसे
दूध में से वसा निकालकर उसमें डालडा मिलाकर बेचना।
खाद्यान्न में मिलावट
खाद्यान्नों तथा अन्न जिन्सों
में कूड़ा-करकट, ईंट-पत्थर, धूल-मिट्टी एवं अन्य बीज मिलाकर मुख्य अनाज के मूल्य पर
ही बेच दिये जाते हैं। चना और अरहर की दाल में खेसारी दाल, मटर दाल मिलाकर बेचा जाता है. ग्राहकों को हानिकारक तत्वों
की मिलावट का पता न चले इसलिए बड़े ही सुनियोजित ढंग से चावल और दालों पर पोलिस की जाती है। अन्न तो अन्न अब
गेंहू के आटे और चने के बेसन में भी मिलावट की जाने लगी है। चने के बेसन में मक्का और खेसारी दाल (तिवड़ा) का आटा
मिलाया जाता है।
हरी भरी सब्जियां भी
खतरनाक : आधुनिक जीवन शैली में
बेमौसमी सब्जियों यथा बरसात और गर्मीं में शीत ऋतू की सब्जियां जैसे गोभी, मटर आदि
की बाजार में अधिक मांग होती है। इन सब्जियों को उगाने में अंधाधुंध रसायनों और
कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें हम महंगे दामों में खरीदकर बड़े ही शौक
से खाते है। बाजार में बिकने वाली सब्जियों को खतरनाक रसायन के माध्यम से रंग-बिरंगा
कर उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जाता है। मटर, परवल, कुंदरू और करेलों को हरे रंग से हरा
भरा बनाकर बेचा जाता है। फूलगोभी की सफेदी और ताजगी बढ़ाने के लिए उस पर सिल्वर
नाइट्रेट डाला जाता है। बाजार में बिकने वाली सुन्दर व् सुडौल लौकी फसल में पादप वृद्धि रसायनों के माध्यम से शीघ्र बड़ा कर बाजार में बेचा जाता है।
आकर्षक और सुन्दर दिखने वाले
फल भी जहरीले: फलों को ताजा दिखाने के
लिए लेड और कॉपर सॉल्यूशन लगाया जा रहा है। फलों को चमकाने के लिए और उन्हें लम्बे
समय तक रखने के लिए उन पर वैक्स की कोटिंग की जाती है । वैक्स युक्त फलों का सेवन
करने से डायरिया और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं। बाजार में उपलब्ध आम, केला और
पपीता जैसे फलों को कैल्शियम कार्बाइड की मदद से पकाया जाता है। ये सब स्वास्थ्य के लिए
बेहद हानिकारक है।
दूध और दूध से बने
पदार्थ: स्वास्थ्यवर्धक पेय दूध
अब मिलावटी तत्वों का नमूना होकर रह गया है जिसके सेवन से लाभ कम हानि ज्यादा है। आजकल दूध में पानी के अलावा यूरिया, डिटर्जेंट पाउडर, सोडा, ग्लूकोज, सफेद पेंट और
रिफ़ाइंड तेल मिलाकर बेचा जा रहा है।यूरिया खाद से दूध बनाकर असली दूध में मिलकर बड़े दूध सप्लायरों को बेचा जाता है। दूध में झाग पैदा करने के लिए साबुन बनाने वाला
कॉस्टिक सोडा, अरारोट और स्टार्च भी मिलाया जा रहा है। ऐसी मिलावटों से दूध गाढ़ा
दिखता है और अधिक दिनों तक खराब नहीं होता है। देशी घी में वनस्पति घी (डालडा) और जानवरों की चर्बी तो खोवा
में आलू, शकरकंद, स्टार्च मिलाकर बेचा जाता है। हर दिल अजीज आइसक्रीम में वॉशिग पाउडर, स्कि्मड पाउडर, टिस्स्यु पेपर, नकली
खोवा व सेकरीन मिलाकर बेचा जा रहा है। पनीर में मैदा और सोयाबीन मिलाकर बेचा जाता है। एक तरफ चाय पत्ती में रंग हुआ लकड़ी
का बुरादा, रंग वाली पत्तिया मिलाकर बेचा जा रहा है तो दूसरी तरफ रेलवे स्टेशनों
और रेलगाड़ियों में मिलावटी चाय पत्ती,
सफेद पेंट से तैयार दूध और शक्कर के नाम पर शेकरीन से तैयार चाय बेचीं जा रही है
जिसे हम सब 10 रूपये प्रति कप खरीद कर बड़े चाव से पीते आ रहे है।
भारत की खाद्य सुरक्षा और
मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में बेचे जाने वाले 68.7 फीसदी दूध एवं दूध से बनी चीजों में
मिलावट का कारोबार होता है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सरकार को कुछ
जरूरी सुझाव दिया था। इस संगठन का आकलन है कि खाद्य पदार्थों, खासकर दुग्ध उत्पादों, में जारी मिलावट पर अगर रोक नहीं लगी, तो 2025 तक भारत के 87 फीसदी लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के
शिकार हो सकते हैं।
मसालों में मिलावट : लाल मिर्च में ईंट का पाउडर,
लकड़ी का बुरादा, डंठल आदि, हल्दी में लैड क्रोमेट व
पीली मिट्टी, काली मिर्च में पपीते के बीज,
हींग में सोप स्टोन व मिट्टी, धनिया में सूखा गोबर, गंधक मिलाकर बेचा जाता है। पिसे हरे
रंग के धनिये को आकर्षक बनाने के लिए उसमें हरा रंग, धान की भूसी और घोड़े की लीद
मिलाई जाती है जिसके सेवन से लीवर,किडनी और तिल्ली रोगग्रस्त हो सकती है।
खाद्य तेल भी मिलावट के
शिकार: खाद्य तेल हमारे भोजन और स्वास्थ्य का अहम् अंग है। सरसों तेल में आर्जीमोन व मूंगफली तेल में सस्ता पॉम ऑयल और अन्य अखाद्य तेलों की मिलावट
की जाती है । निम्न गुणवत्ता वाले सस्ते तेलों को नामी ब्रांडों के नाम से आकर्षक
विज्ञापन के नाम से बेचा जा रहा है।
रेडी टु ईट खाद्य सामग्री भी
खतरे के निशान से ऊपर: आज कल रेडी टु ईट खाध्य (तुरंत खाने योग्य) सामग्री जैसे
मैगी, नूडल्स, पास्ता, ब्रेड, नमकीन आदि से बाजार अटे पड़े है परन्तु इन खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता को अनदेखा करते हुए हम सब इनका सेवन कर रहे है। पिछले वर्ष मैगी में शीशे की मिलावट का मुद्दा
बड़े जोर-शोर से उछला था तो हाल ही में खाने वाली ब्रेड में पोटैशियम ब्रोमेट तथा
पोटाशियम आयोडेट की मिलावट की बात सामने आई है। सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट
(सीएसई) के एक अध्ययन में 38 ब्रेड और पाँव के नमूनों में से 32 नमूने यानि 84 प्रतिशत में पोटाशियम ब्रोमेट तथा पोटाशियम आयोडेट की
मिलावट पाई गई ।आहार विशेषज्ञों के अनुसार ये दोनों केमिकल कार्सिनोजेनिक होते
हैं जिससे कैंसर तथा थायराइड की बीमारी हो सकती है।
शीतल पेय: खाद्य पदार्थों के अलावा आजकल बाजार में उपलब्ध
भांति-भांति के शीतल पेय यथा कोल्ड ड्रिंक्स, लस्सी, छाछ, फलों का जूस आदि की
शुद्धता की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे है। कोल्ड ड्रिंक्स में पाए जाने वाले लिंडेन, डीडीटी मैलेथियान और क्लोरपाइरिफॉस को कैंसर, स्नायु, प्रजनन संबंधी बीमारी और प्रतिरक्षित तंत्र में खराबी के
लिए जिम्मेदार माना जाता है । कोल्ड ड्रिंक्स के निर्माण के दौरान इसमें फॉस्फोरिक
एसिड डाला जाता है । फॉस्फोरिक एसिड एक ऐसा अम्ल है जो दांतों पर सीधा प्रभाव
डालता है । इसमें लोहे तक को गलाने की क्षमता होती है । इसी तरह इनमें मिला इथीलिन
ग्लाइकोल रसायन पानी को शून्य डिग्री तक जमने नहीं देता है । बाजार में सुन्दर पेकिंग में उपलब्ध भांति-भाँती के शीतल पेय पदार्थों को मीठा
जहर कहा जा सकता है ।
मांस-मछली भी मिलावटी : मिलावट के इस दौर में लोगों
को शुद्ध मछली और मांस भी नसीब नहीं है। जिस प्रकार शवगृह में लाशों/मुर्दों को
रखा जाता है, उसी तरीके से अमोनिया और फॉर्मलडिहाइड में मछलियों को रखा जाता है। अनेक बड़े शहरों में एक सप्ताह पुरानी मछलियों को बर्फ में रखा जाता है। मछलियों को ताजा
दिखाने के लिए उन पर तमाम तरह के खतरनाक रसायन छिड़के जाते हैं। आज कल मछली
व्यापारी पानी से भरी टंकी में विभिन्न प्रजातियों की जिंदा मछलियां रखते हैं
जिनका वजन बढ़ाने के लिए तमाम प्रकार के प्रतिबंधित रसायन का इस्तेमाल करते है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक समझे जाते हैं। परन्तु नासमझ ग्राहक उक्त जिन्दा
मछलियों को सामने कटवा कर अपने भोजन का हिस्सा बनाने में शान समझते है। देश के सभी
छोटे और बड़े शहरों में बकरे के मांस में बूढ़ी और बीमार बकरियों के मांस की
मिलावट की जाती है। मुर्गियों को एंटीबायोटिक खिला कर तेजी से बड़ा और वजनदार बनाकर
बेचा जा रहा है। इस प्रकार से देश में शाकाहार नहीं अब मासाहार भी मिलावट के शिकार होते जा रहे है।
जहर भी मिलावटी : कहते है कि आजकल जहर भी
शुद्ध नहीं मिलता है। बाजार में रंग-बिरंगे आकर्षक पाउचों में बिकने वाले गुटकों,
पान मसालों एवं पान के अन्दर पड़ने वाले तत्वों में घाटियाँ सामग्री मिलाकर धडल्ले
से बेचा जा रहा है। यही नहीं अब तो मिलावटखोरों ने शराब में भी मिलावट करना
प्रारंभ कर दिया है। नकली और जहरीली शराब पीकर मरने वालों की खबरे आये दिन अख़बारों
में पढने को मिल जाती है। साइंस पत्रिका के मुताबिक भारत में उत्पादित कुल शराब का
दो तिहाई हिस्सा अवैध तरीके से बनाया जाता है।
औषधियां भी अछूती नहीं: मिलावटी चीजों के खाने से अगर
कोई बीमार पड़ जाए तो अब बाजार में दवाइयां भी मिलावटी या नकली बिक रही हैं। च्यवनप्राश
में कद्दू और आलू तथा शहद में शक्कर की चासनी मिलाकर बेचा जा रहा है। औषधियों में
मिलावट या नकली दवाइयां यानि यानी आपके बचने के सभी रास्ते बंद होते जा रहे है ।
खाद्य पदार्थो में मिलावट रोकने सख्त कानून
खाद्य पदार्थों में मिलावाटखोरी को
रोकने और उनकी गुणवत्ता को स्तरीय बनाये रखने के लिए केंद्र सरकार ने खाध्य
सुरक्षा और मानक अधिनियम-2006 के तहत खाद्य पदार्थो के विज्ञान आधारित मानक निर्धारित
करने एवं निर्माताओं को नियंत्रित करने के
लिए भारतीय खाध्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का गठन किया जिसे 1 अगस्त,2011 को
केंद्र सरकार के खाध्य सुरक्षा और मानक विनिमय (पैकेजिंग एवं लेबलिंग) के तहत
अधिसूचित किया गया। यह देश के सभी राज्यों, ज़िला एवं ग्राम पंचायत स्तर पर खाद्य पदार्थों के उत्पादन
और बिक्री के तय मानकों को बनाए रखने में सहयोग करता है। इस कानून के तहत
मिलावटी, घटिया, नकली माल की बिक्री, भ्रामक विज्ञापन के मामले में सम्बंधित
प्राधिकारी भारी भरकम जुर्माना लगा सकता
है। मिलावटी खाध्य पदार्थो के सेवन से यदि किसी की मौत हो जाती है तो अदालत उस
व्यक्ति को कुछ वर्षो से लेकर उम्रकैद और भरी जुर्माने से दण्डित कर सकते है। खाध्य पदार्थो के छोटे निर्माता, रिटेलर,हॉकर, वेंडर, खाध्य पदार्थो के छोटे
व्यापारी जिनका सालाना टर्नओवर 12 लाख रूपये से कम है, उन्हें पंजीकरण कराना होगा
और 12 लाख रूपये से अधिक के टर्नओवर वाले
व्यापारियों को खाध्य लाइसेंस लेना होगा। बिना पंजीकरण और लायसेंस के खाद्य कारोबार करते पाये जाने पर कारावास
एवं भारी जुर्माना हो सकता है। कानून में कड़े प्रावधान होने के बावजूद देश में लागू खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम-2006 का कड़ाई से अनुपालन न होने की वजह से खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण/मिलावट का खेल बदस्तूर जारी है जिसके कारण बहुसंख्यक आबादी विभिन्न बिमारियों का शिकार होती जा रही है।
शुद्ध के लिए युद्ध : सचेत ग्राहक तंदुरस्त भारत
मिलावटी खाध्य वस्तुएं तैयार
करने से लेकर बाजार तक पहुचाने और बेचने जैसी अनैतिक और आपराधिक गतिविधियों का देश
में समूचा जाल कार्यरत है जो जीवन और स्वास्थ्य के हमारे बुनियादी अधिकारों के साथ
खिलवाड़ में लगा है। इनसे बचने के लिए हम सबको और आम उपभोक्ता को जागरूक होकर
शुद्ध के लिए युद्ध का शंखनाद करना पड़ेगा। केंद्र सरकार द्वारा देश में लागू खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम-2006 के बारे में आम नागरिक/उपभोक्ताओं को जागरूक करने की आवश्यकता है। बाजार
या दुकान से सामान खरीदने से पहले इस
बात की पड़ताल अवश्य करें कि क्या वह सामग्री साफ है ? क्या वहां खाद्य निरीक्षक
जांच करते हैं ? क्या सामग्री की पैकेजिंग सही है? सामग्री निर्माण की तिथि और
स्थान अंकित है या नहीं ? क्या सामान पर इस्तेमाल करने की तारीख भी
लिखी है? दूकानदार के पास खाध्य सामग्री बेचने का लाइसेंस है या नहीं । हमेशा सस्ता नहीं अच्छा खरीदें। डिब्बा बंद या पैक्ड और इस्तेमाल करने की
अंतिम तारीख लगी हुई ब्रांडेड वस्तुएं
ही खरीदें। आइएसआइ मार्क देखकर ही सामान खरीदें, जो
भारतीय मानक ब्यूरो क्वालिटी व
विश्वसनीयता के आधार पर कंपनी को देता है। यह मार्क फलों, सब्जियों, मसाले आदि
पर दिया जाता है। एग मार्क लगी हुई चीजें गुणवत्ता व शुद्धता का प्रतीक माना जाता
हैं । यह प्रतीक खासतौर पर घी, तेल और
मसालों की पेकिंग पर अंकित होता है। किसी ब्रांडेड आइटम की गुणवत्ता या शुद्धता पर
शक होने पर उसके पैकेट पर छपे कंपनी के फोन नंबर या पते पर संपर्क किया जाना चाहिए
या खाद्य विभाग/पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करना चाहिए । खरीदे गए सामान की हमेशा रसीद जरूर लेना चाहिए।
कृपया ध्यान रखें: कृपया इस लेख के लेखक ब्लॉगर की अनुमति के बिना इस आलेख को अन्यंत्र कहीं पत्र-पत्रिकाओं या इन्टरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित करना ही है, तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पते का उल्लेख करना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे। लेख प्रकाशित करने की सूचना लेखक के मेल profgstomar@gmail .com पर देने का कष्ट करेंगे।
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