Powered By Blogger

रविवार, 28 मई 2017

समसामयिक उद्यानिकी :अश्विन-कार्तिक (अक्टूबर) माह में बागवानी के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
सस्य विज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

कृषि प्रधान देश होते हुए भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और  संसार में औसतन 227  ग्राम है।  संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए. भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है। स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की आवश्यकता है. इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है।  समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है।  अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही आशातीत सफलता प्राप्त होती है।  प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता है।  उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं। अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न होना चाहिए।  इसी तारतम्य में हम उद्यान फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) में जुलाई (आषाढ़-श्रावण) माह में संपन्न किये जाने वाले  समसामयिक  कृषि कार्यो पर विमर्श प्रस्तुत कर रहे है। 
आश्विन-कार्तिक यानि अक्टूबर माह में  गुलाबी जाड़े का अहसास होने लगता है। इस माह में मौसम सुहावना और स्वस्थ्यप्रद होने लगता है।  दुर्गोत्सव, दशहरा और दीपावली के उत्सव की चारों  और धूम रहती है। शीत ऋतु की बागवानी को अपनी कल्पना और सूझ-बूझ से सुन्दर,आकर्षक और लाभप्रद  बनाने का यह व्यस्ततम माह है।  इस माह सब्जी और फल-फूल में काफी कार्य करना होता है। इसके लिए मजदूरों की व्यवस्था कर लेवें। वर्षा ऋतु में वाटिका में उगे खरपतवारों की साफ़-सफाई और खेतों की जुताई-गुड़ाई इस माह करना आवश्यक है ताकि शीत ऋतु की फसलों की बुआई/रोपाई नियत समय पर संपन्न की जा सकें।  उद्यानिकी-बागवानी में इस माह के नियत कृषि कार्यों  फसल वार संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है। 

सब्जिओं में इस माह  
  • टमाटरः आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व सिंचाई करें। फल सड़न व एन्थ्रोक्नोस रोग  से सुरक्षा हेतु  मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। नई फसल की रोपाई का उचित समय है। 60 x 45 सेमी. दूरी पर रोपाई करें। सितम्बर में रोपी गई खड़ी फसल में 50 किग्रा. प्रति हे. की दर से यूरिया खाद देवें।
  • बैंगन, मिर्च एवं मटरः तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें। फसल में फल तथा तना छेदक नामक कीट के बचाव के लिये मेलाथियान 50 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1 मिली. या इमीडेक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 0.3-0.5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। मिर्च के  तैयार हरे फलों को तोड़कर बिक्रय हेतु बाजार भेजें। हरी मटर की उन्नत किस्मों  की बुवाई करें। सभी  फसलों  में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें।
  • मूली, गाजर, शलजमः इस माह में सभी की बुवाई करें, उचित समय है। खेत की अंतिम जुताई  के  समय 200-250  क्विंटल  सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 50:60:60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फॉस्फोरस  व पोटाश मिलाएं । खेत में 30 सेमी. की दूरी पर मेंड़े बनाकर उन पर 10 सेमी. की दूरी पर बीज बोयें।
  • आलूः आलू की बुवाई का कार्य माह के  अंतिम सप्ताह से प्रारंभ करें। बीज 2.5 सेमी. व्यास का 25-30 ग्राम वजन के  लगभग 25-30 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होगी। बुवाई से पूर्व बीज को  कार्बेण्डाजिम 0.1 प्रतिशत के  घोल में एक मिनट तक डुबोकर उपचारित करने के  उपरान्त एजेटोबैक्टर कल्चर से भी उपचारित करें। बुवाई पूर्व 250-300 क्विंटल  गोबर की खाद, 60-75 किग्रा. नत्रजन, 80-100 किग्रा. फॉस्फोरस  एवं 80-100 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलायें । कुफरी बादशाह, कुफरी सिन्दूरी, कुफरी ज्योति आलू की उन्नत किस्में है।
  • फूलगोभी व पत्तागोभीः इनकी रोपाई का उचित समय है। अगेती किस्मों  की तैयार पौध को  60 x 60 सेमी. तथा पिछेती किस्मों को  60 x 45 सेमी. की दूरी पर लगावें। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें। पौध  लगाने से पूर्व 200-250 क्विंटल  गोबर  की खाद, 75:100:100 किलोग्राम 60-75 किग्रा.नत्रजन, 80 किग्रा. फॉस्फोरस  व 60-80 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिलावें। पत्तीखाने वाले कीड़ों के  नियंत्रण के  लिए फूल बनने से पूर्व कार्बेरिल 5 प्रतिशत या मेलाथियान 5 प्रतिशत डस्ट 20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
  • पालक,मैंथी, धनियां:पूर्व में बोई गई फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। यदि अभी तक बोआई नहीं हो पाई है तो शीघ्र ही बोआई करें। खेत की आखिरी जुताई पर 50:60:60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश डालकर 30 सेमी. की दूरी पर कतारे बनायें उनमें बुआई करें।
  • प्याजः रबी प्याज के  लिए नर्सरी तैयार करें। प्याज की सफेद किस्मों  में पूसा व्हाईट फ्लेट व राउन्ड, पंजाब सफेद, नासिक रेड,एग्रीफाउन्ड डार्क रेड, अर्का कल्याण आदि उपयुक्त है। प्रति हेक्टेयर फसल के  लिए 10 किग्रा. बीज पर्याप्त होता है। बीज को  उचित क्यारियों  में बोकर बारीक भुरभुरी देशी खाद या मिट्टी तथा  सूखी घास से ढंक दें तथा अंकुरण उपरान्त हटा दें।
  • लहसुनः लहसुन की बोआई का यह उचित समय है। खेत की आखिरी जुताई के  समय 200-250 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाएं। बुवाई से पहले 50:60:60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश उर्वरक  देवें । तैयार  क्यारियों में कलिकाओं  (लहसुन की पुत्तियों) की बुवाई कतार से कतार 10-15 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 7-8 सेमी. रखें। बुवाई हेतु 5 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर कलिकाओं (पुत्तियों) की आवश्यकता होती है। खेत की मृदा  में इस समय पर्याप्त मात्रा में नमीं होनी चाहिए।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियाँ: तैयार फलों की तोड़ाई कर बिक्रय हेतु बाजार भेजें। फल मक्खी की रोकथाम के  लिए मैलाथियान 50 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें  अथवा 100 ग्राम शक्कर को  एक लीटर पानी में घोलकर उसमें 10 मिली. मेलाथियान 50 ई.सी. डाल दें तथा जगह-जगह पर मिट्टी के  प्यालों  में इसे लटका कर रखें। तुलासिता (डाउनी मिल्ड्यू) व झुलसा रोग  से बचाव हेतु मेंकोजेब 2 ग्राम या कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें।
  • शकरकंदः फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व सिंचाई करें। बेलों की पलटाई करें।
  • अदरक, हल्दी, अरबी व सूरनः तैयार फसलों  की खुदाई करें। देर से बोई गई फसल में 50 किलोग्राम यूरिया, खड़ी फसल में डालें। बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत डाइथेन एम-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें। हल्दी की फसल में एक बार मिट्टी चढ़ायें। तैयार अरबी की खुदाई करें व बाजार भेजें। बाजार भेजने से पूर्व कंदों  की छंटाई व सफाई करें।

फलोद्यान में इस माह
  • आमः बाग में एक बार जुताई करके थालों की सफाई करें। पुष्प गुच्छा रोग की रोकथाम हेतु नेफ्थलीन एसिटिक अम्ल (200 पीपीएम) का छिड़काव करें। बाग में सिंचाई हेतु नालियां बना लेवें ।
  • नीबूवर्गीय फल: बाग की जुताई करें। टहनियों, पत्तियों  व फलों  पर भूरे उठे हुये धब्बे पड़ने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 250 मिलीग्राम  कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसके  अलावा यदि 2.5-3 ग्राम कॉपर  आक्सीक्लोराइड प्रति लीटर साथ में मिलाकर छिड़काव करने से प्रभावी नियंत्रण होता है। इल्लियों के  नियंत्रण हेतु हेक्साकोनाजोल या ट्राइएजोफ़ॉस  20 ई.सी. 2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधो  पर छिड़कव करें ।
  • पपीताः नये लगाये गये पौधों  में समय पर सिंचाई  करें। पपीते के  पौधों के  चारों तरफ  मिट्टी चढ़ावें जिससे पानी तने से न छुये अन्यथा तना गलन रोग  की संभावना रहती है।
  • बेरः थालों को साफ कर सिंचाई के लिए नालियां बना लें। सूटी मोल्ड रोग में पत्तियों  पर काले रंग का फफूंद होने पर पत्तियाँ काली पड़ने लगती है। इस रोग के  नियंत्रण हेतु मेंकोजेब 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • अनारः पौधों में फल आने का समय है अतः समय पर सिंचाई का ध्यान रखें। बगीचे को  साफ सुथरा और  खरपतवार रहित रखें। पौधों की कोमल टहनियों  व फूलों  का रस चूसने वाली मिलीबग के  नियंत्रण के  लिए डाइमेथोएट 1 मिली. या इमीडेक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 0.5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों  पर छिड़काव करें।
  • आवंलाः बाग में सिंचाई की नालियां बना लें। छाल भक्षक कीटों के नियंत्रण हेतु हेक्साकोनाजोल  या ट्राइएजोफ़ॉस  20 ई.सी. 2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करें । रस्ट की रोकथाम हेतु कॉपर  आक्सी क्लोराइड (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव करें।
  • करौंदा: पुराने बाग में कॉपर  आक्सी क्लोराइड (0.25 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें। नए बाग लगाने का कार्य समाप्त करें।
  • कटहलः पुराने बाग में कॉपर  आक्सी क्लोराइड (0.25 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें। नए बाग रोपण का कार्य समाप्त करें। बाग की जुताई करें। थालों को साफ रखें।
  • अमरूद:बरसाती फसल को तोड़कर बाजार भेजें। म्लानि रोग  फैलने से पौधों  की शाखाएं सूखने लगती है जिसके  नियंत्रण हेतु 20 ग्राम कार्बेण्डाजिम 20 लीटर पानी में घोलकर पौधों  की जड़ों के आस पास डालें।
  • स्ट्राबेरी के सकर्स लगाने का यह उपयुक्त समय है। 
  • फल-सब्जी संरक्षण: कुम्हणा से पेठा, मुरब्बा तथा कैण्डी बना सकते है। अदरक का कैण्डी तथा अचार बना सकते हैं। अंगूर तथा अनार के स्क्वैश, शरबत बनाया जा सकता है। आंवलें और केले के फलों से भी  विभिन्न उत्पाद बना सकते हैं।
पुष्पोत्पादन में इस माह
  • सितम्बर माह में तैयार की गई क्यारिओं में बीजों से अंकुरित हुए मौसमी फूलों की पौध को क्यारिओं और गमलों में लगा देना चाहिए। 
  • गुलाब के पौधों की  छंटाई  और क्यारियों की निराई-गुड़ाई संपन्न करें .बेकार जंगली कल्ले तोड़ देवें । माह के तीसरे सप्ताह में पौधों की कटाई, छटाई तथा इनकी जड़ों को खोदना चाहिए । एक सप्ताह  बाद गोबर की सड़ी खाद और मिट्टी मिलाकर दोबारा जड़ों की भराई करें। 
  • ग्लैडियोलस के घनकन्दों को 0.05 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में 10-15 मिनट डुबोकर उचित दूरी पर रोपण करें । रोपण से पूर्व क्यारियों में कार्बोफ्यूरान 5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाएं।
  • रजनीगन्धा के स्पाइक की कटाई, छटाई, पैकिंग एवं विपणन की व्यवस्था करें।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।

कोई टिप्पणी नहीं: