डॉ.गजेन्द्र
सिंह तोमर
सस्यविज्ञान
विभाग
इंदिरा गांधी
कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
किसानों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियो एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुँचाया जाना जरुरी है । समय अविराम रूप से गतिमान है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय से होता रहता है। अतः कृषि के समस्त कार्य यानि बीज अंकुरण, पौधों की वृद्धि, पुष्पन और परिपक्वता समय पर ही संपन्न होती है। कृषि के कार्य समयवद्ध होते है अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने पर ही आशातीत सफलता की कामना की जा सकती है। का वर्षा जब कृषि सुखाने जैसी कहावते भी समय के महत्त्व को इंगित करती है। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सस्य क्रियाओं से किसानों को रूबरू कराना चाहिए। कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर उचित समय पर पोषक तत्वों का इस्तेमाल, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।
ग्रीष्म-वर्षा ऋतु का जुलाई यानी आषाढ़-श्रावण वर्षा प्रधान माह है। मानसून की सक्रियता के कारण वातावरण का तापक्रम कम हो जाता है और सापेक्ष आद्रता बढ़ जाती है। बादलों की घनघोर घटाएं, मिट्टी की सौंधी खुशबू तथा हरियाली की चादर ओढ़ती धरती इस समय निहारते ही बनती हैं । इस माह वर्षा के साथ तेज आँधियाँ चलने की भी संभावना रहती है। जुलाई महीने का औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 30.3 एवं 23.7 डिग्री सेन्टीग्रेड संभावित होता है और वायु गति अमूमन 11 किमी. प्रति घंटा हो सकती है। खेतों में बिजाई करने, पौध रोपण के साथ कृषि को एक नया रूप देने का यह उचित समय होता है।
ग्रीष्म-वर्षा ऋतु का जुलाई यानी आषाढ़-श्रावण वर्षा प्रधान माह है। मानसून की सक्रियता के कारण वातावरण का तापक्रम कम हो जाता है और सापेक्ष आद्रता बढ़ जाती है। बादलों की घनघोर घटाएं, मिट्टी की सौंधी खुशबू तथा हरियाली की चादर ओढ़ती धरती इस समय निहारते ही बनती हैं । इस माह वर्षा के साथ तेज आँधियाँ चलने की भी संभावना रहती है। जुलाई महीने का औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 30.3 एवं 23.7 डिग्री सेन्टीग्रेड संभावित होता है और वायु गति अमूमन 11 किमी. प्रति घंटा हो सकती है। खेतों में बिजाई करने, पौध रोपण के साथ कृषि को एक नया रूप देने का यह उचित समय होता है।
माह के प्रमुख मंत्र
समय पर बुवाई व संतुलित पोषक तत्व प्रबंधनः फसलों की समय पर
बुवाई और रोपाई करना सबसे महत्वपूर्ण कृषि
मंत्र है। देर से बुआई करने से उपज में
भारी क्षति होने का अंदेशा रहता है। मृदा
परीक्षण के आधार पर खरीफ फसलों की आवश्यकता के अनुरूप प्रमुख पोषक तत्वों (नत्रजन, स्फुर और पोटाश) तथा कैल्सियम, सल्फर
और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग संतुलित मात्रा में, उचित समय और सही विधि से इस्तेमाल करना निहायत जरूरी है।
खेत में उचित जल निकासः खरीफ में अचानक भारी वर्षा होने की संभावना रहती है। अधिक वर्षा से फसलों को
होने वाले नुकसान से बचाने के लिए खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था रखें। आवश्यकता से अधिक जल को खेत के निचलें भाग में डबरी या तालाब में संरक्षित करें जिससे आवश्यकता पड़ने पर इस
पानी से फसल की सिंचाई की जा सकें ।
खेत में नमीं संरक्षण: ग्रीष्मऋतु में उपलब्ध पानी से अधिकतम लाभ लेने के लिए भूमि से जल वाष्पीकरण को कम करना आवश्यक है क्योंकि खेतों का
एक तिहाई जल वाष्पीकरण के माध्यम से उड़ कर व्यर्थ चला जाता हैं। खेतों में पलवार (मल्च) विछा देने से मृदा से जल की
हांनि को कम किया जा सकता है जिससे फसल पैदावार में भी इजाफा होता है। खेत में आने वाले
वर्षा जल को खेत में रोकने की व्यवस्था करना चाहिए। इसके लिए खेत के चारों तरफ मेंड़ बंदी करें जिससे वर्षा जल खेत में ही संरक्षित होगा
जिससे मृदा में नमीं स्तर बढ़ जायेगा।
आषाढ़-श्रावण (जुलाई) माह के प्रमुख कृषि कार्य
खरीफ फसलों की बुआई और अन्य कृषि कार्यों के लिए आषाढ़-श्रावण सबसे महत्वपूर्ण महिना है। फसलोत्पादन से अधिकतम उत्पादन और आर्थिक लाभ लेने हेतु इस माह संपन्न किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्यो की चर्चा यहाँ प्रस्तुत की जा रही है।- खरीफ की महत्वपूर्ण धान्य फसल-धानः धान फसल की रोपाई इस माह समाप्त कर लेवें । खेत मचाई के दूसरे दिन रोपाई करना उचित रहता है। रोपाई के लिये 20-30 दिन पुरानी पौध प्रयोग करें। रोपाई रस्सी की सहायता से 20-25 सेमी की दूरी पर कतारों में करें तथा एक स्थान पर दो से तीन पौध सीधे तथा 3 सेमी. गहराई पर लगावें । अच्छा होगा यदि पौध (थरहा) को क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. 1 मिली. दवा प्रति लीटर पानी तथा 2 किग्रा. यूरिया के घोल में 3-4 घंटा डुबाने के पश्चात रोपाई करें ।
- धान सघनीकरण पद्वति (श्री विधि) से धान की रोपाई कतार से कतार की दूरी 25 सेमी. एवं पौध से पौध की दूरी 25 सेमी. (वर्गाकार) रखी जाती है। इस विधि में 8-12 दिन की पौध (दो पत्ती अवस्था) की रोपाई करना चाहिए । इसमें एक हेक्टेयर के लिए 100 वर्गमीटर नर्सरी क्षेत्र और मात्र 8-10 किग्रा. स्वस्थ बीज की आवश्यकता होती है। खेत में 20 टन गोबर की खाद मिलाएं। जैविक खाद उपलब्ध न होने पर मध्यम अवधि वाली किस्मों में 80 किग्रा. नत्रजन, 50 किग्रा. स्फुर एवं 30 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोंग करें। स्फुर व पोटाश आधार खाद के रूप में तथा नत्रजन का उपयोंग तीन किश्तों-रोपाई के एक सप्ताह बाद,कंशे फूटते समय एवं गभोट अवस्था के प्रारंभ काल में करें। रोपाई के 10, 20 व 30 दिन बाद हस्तचलित कृषि यंत्र ताउचीगुरमा (कोनोवीडर) से निंदाई करने से खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ पौधों की जड़ों को आवश्यक हवा भी उपलब्ध हो जाती है। वानस्पतिक बढ़वार के समय खेत में समुचित नमीं विद्यमान रहना चाहिए। खेत में पानी का जमाव न रखें। फसल में कंशे निकलने की अवस्था के समय 2-4 दिन खेत को सूखने दें जिससे भरपूर कंशे निकलेंगे। फूल बनने एवं दाना भरने की अवस्था पर खेत में पानी का हल्का स्तर रखना चाहिए।
- धान की किस्म व मृदा उर्वरता जांच के आधार पर उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए। यदि किसी कारणवश भूमि परीक्षण न हुआ हो तो उन्नत किस्मों में 80-100 किग्रा. नत्रजन, 50-60 किग्रा. फॉस्फोरस, एवं 30-40 किग्रा. पोटाश तथा संकर धान में 120-130 किग्रा. नत्रजन, 60-80 किग्रा. फॉस्फोरस, एवं 50-60 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से से प्रयोग करे। नत्रजन की 20-30 प्रतिशत मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई या रोपाई के पूर्व प्रयोग करें। नत्रजन की शेष 30 प्रतिशत मात्रा कंशे आते समय तथा 40 प्रतिशत मात्रा फसल में गभोट अवस्था आने से 20 दिन पूर्व डालना चाहिए ।
- रोपाई वाले धान में खरपतवार नियंत्रण के लिये ब्यूटाक्लोर 50 ई.सी. 3.0 लीटर या एनीलोफ़ॉस 30 ई.सी. 1.65 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से रोपाई के 3-4 दिन के अन्दर प्रयोग करना चाहिए।
- सीधे बोये गये धान में बियासी व सघन चलाई करें व नत्रजन की शेष मात्रा देवें। बियासी करते समय खेत में 5-10 सेमी. जल स्तर होना चाहिए। धान में यदि कटुआ इल्ली या फौजी कीट का प्रकोप हो तो क्विनाल्फ़ॉस 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव करे। खरपतवार नियंत्रण हेतु अंकुरण पूर्व आॅक्जाडायर्जिल या एनीलोफाॅस या ब्यूटाक्लोर अथवा पेन्डीमेथेलिन का छिड़काव करें। अंकुरण बाद चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारो की रोकथाम हेतु इथाक्सी सल्फुरोन (सनराइज) या क्लोरिम्यूराँन और मेटसल्फुरोन (आलमिक्स) या 2,4-डी (ग्रीन वीड, वीडमार) का छिडकाव करें।
- लाभकारी फसल मक्काः यदि मक्का की बुवाई पूर्व में नहीं हो पाई है तो उन्नत किस्मों की बुवाई शीघ्र कर लें। बुवाई के 20-30 दिन के अन्तर पर निराई-गुड़ाई संपन्न करें। जून में लगाई गई मक्का में तना छेदक से 10 प्रतिशत मृत गोभ होने पर कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत ग्रेन्यूल 20 किग्रा. प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए या फेनिट्रोथियान 50 ई.सी. 1.0 लीटर या क्यूनालफ़ॉस 25 ई.सी. 2 लीटर मात्रा प्रति हे. की दर से छिड़काव करना चाहिए। पत्ती लपेटक कीट के रोकथाम हेतु क्लोरपायरीफ़ॉस 20 ई.सी. 1.0 ली. प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए।
- ज्वारः ज्वार की बुवाई हेतु जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय अधिक उपयुक्त है। एक हैक्टेयर क्षेत्र की बुवाई के लिये 12-15 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। खरपतवार नियंत्रण हेतु 500 ग्रा. एट्राजीन सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें।
- बाजराः वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते ही बाजरे की बुवाई करें । बुआई के लिये जुलाई का दूसरा व तीसरा सप्ताह उत्तम है। बारानी क्षेत्रों में प्रति हैक्टेयर 4-5 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है। बुआई कतारों में करें।
- अरहरः अरहर की कम समय में पकने वाली किस्मों की बुआई जुलाई के प्रथम सप्ताह में करें । एक हैक्टेयर के लिये 18-20 किग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है। सभी दलहनी फसलों के बीज बुवाई पूर्व उचित राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना न भूलें।
- मूंग व उड़दः मूंग एवं उर्द की शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की बुआई संपन्न करें।प्रति हैक्टेयर इनका 15-20 किग्रा. बीज पर्याप्त होता है। बुवाई कतारों में ही करें।
- सोयाबीनः सोयाबीन की बुआई अभी नहीं की है तो जुलाई के प्रथम सप्ताह तक उचित जल निकास युक्त खेतों में इसकी बुवाई अवश्य संपन्न करें। सोयाबीन का प्रमाणित बीज 80-100 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से 30 सेमी. दूर कतारों में तथा 4-5 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु अंकुरण पूर्व एलाक्लोर (लासो) या पेंडीमेथालिन (स्टॉम्प) या मेट्रीबुजीन (सेंकर) का छिडकाव अनुसंशित दर पर करें।
- मूंगफलीः खरीफ की महत्वपूर्ण तिलहनी फसल मूंगफली की बुवाई माह के मध्य तक पूरी कर लेवें । बुआई हेतु प्रति हैक्टेयर गुच्छेदार किस्मों के लिये 80-100 किलो व फैलने वाली किस्मों के लिये 60-80 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है। फैलने वाली प्रजातियों में 45 सेमी. तथा गुच्छेदार प्रजातियों में 30 सेमी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी तथा 15-20 सेमी. पौधे से पौधे की दूरी रखने से उचित पौधों की संख्या प्राप्त होती है। गत माह लगाई गई मूंगफली फसल में आवश्यकतानुसार निंदाई-गुड़ाई कार्य संपन्न कर लेवें ।
- तिलः मध्य जुलाई तक तिल की बुवाई करें । जीटीएस-8,कृष्णा, जीटीएस-21,तथा टीकेजी-21 तिल की उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज बुआई हेतु प्रयोग करें। प्रति हैक्टेयर 5-7 किलो बीज दर पर्याप्त होती है।बुवाई कतारों में 30-40 सेमी. का फासला रखकर 2-3 सेमी. की गहराई पर कूड़ों में करें। पौध से पौध के बीच 10-15 सेमी. की दूरी स्थापित कर लेवें । बुवाई के समय 25-30 किग्रा नत्रजन व स्फुर तथा 15-20 किग्रा. पोटाश उर्वरक खेत में मिलाएं।
- गन्ना: गन्ने के खेत में जल निकासी की व्यवस्था कर लेवें । यदि पौधों पर मिट्टी नहीं चढ़ाई हैं तो तुरन्त यह कार्य संपन्न करें। विभिन्न बेधक कीटों के जैविक नियंत्रण हेतु ट्राइकोकार्डस (ट्राइकोग्रामा स्पेसीज के अण्ड परिजीवी) को गन्ना फसल में 50,000 प्रौढ़ प्रति हेक्टर 15 दिन के अन्तराल से बांधे। गन्ना फसल गिरने से बचाने के लिए जुलाई के मध्य पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ाना चाहिए। गन्ने की बढ़वार को ध्यान में रखते हुए जुलाई के अन्तिम सप्ताह में भूमि सतह से 1.5 मीटर की ऊंचाई पर पहली बंधाई (नीचे और मध्य के सूखे पत्तों को आपस में लपेटकर बांधने का कार्य) करें । बधाई करते समय फसल वृद्धि क्षेत्र खुला रखना चाहिये।
- कपास: फसल में निंदाई-गुड़ाई कार्य संपन्न करें।
- लोबिया एवं ग्वार: गत माह ग्वार व लोबिया फसलें यदि नहीं बोई गई है तो इस माह इनकी बुवाई संपन्न करे। बुआई के लिये लोबिया का 30-40 किग्रा. बीज पर्याप्त होता है।
- चारे के लिये ज्वार, सूडान घास, मक्का और नेपियर घास लगायी जा सकती है। ज्वार में प्रूसिक अम्ल नामक एक विषैला पदार्थ पाया जाता है अतः छोटी अवस्था में इसे जानवरों को न खिलायें। संकर ज्वार एवं एम पी चरी आदि में विष की मात्रा कुछ कम होती है।
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